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नवीन जिंदल को संभावित जितिन बनाने के लिए भाजपा करेगी हर जतन, जानें क्या होंगे परिणाम

हरियाणा के अंतर्गत आने वाले कुरुक्षेत्र जिलें के दो बार सांसद का भर संभाल चुके नवीन जिंदल को हरियाणा का संभावित जितिन बनाने के लिए भाजपा हर अथक प्रयास करेगी। इस बाद से बहुत कम लोग वाफिक होंगे कि 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले युवा नवीन जिंदल की स्वाभाविक पसंद भाजपा थी।

वहीं आपको बता दें कि यह स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के वह बड़े प्रशंसक हैं। लेकिन जब वह कुरुक्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लडने के लिए इच्छुक हुए तो उस दौरान भाजपा उससे कतई राजी थी। उसके पास कोई सशक्त प्रत्याशी ही नहीं था, लेकिन नवीन को उनके पिता ओमप्रकाश जिंदल ने मनाया था।

नवीन जिंदल को संभावित जितिन बनाने के लिए भाजपा करेगी हर जतन, जानें क्या होंगे परिणामनवीन जिंदल को संभावित जितिन बनाने के लिए भाजपा करेगी हर जतन, जानें क्या होंगे परिणाम

स्वर्गीय ओमप्रकाश जिंदल उस समय कांग्रेस में थे। उनके कहने पर नवीन कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीते। वह 2009 में भी जीते, लेकिन 2014 में हार गए। 2019 का चुनाव वह लड़ना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस के टिकट पर नहीं। इसके बावजूद कि राहुल गांधी के साथ उनके मधुर संबंध थे। राहुल उन्हें कांग्रेस से फिर लड़ाना चाहते थे

, लेकिन उनका परिवार नहीं चाहता था कि वह कांग्रेस से लड़ें। यद्यपि परिवार को उनके चुनाव लड़ने पर आपत्ति नहीं थी। उनका परिवार चाहता था कि वह कांग्रेस के टिकट पर न लड़ें। इसीलिए चुनावों के ठीक पहले उन्होंने अपने क्षेत्र में जनसंपर्क भी शुरू किया तो वह उस दौरान सिर्फ अपनी बात करते थे।

नवीन उस समय कांग्रेस नहीं छोड़ना चाहते थे। वैसे लिखा-पढ़ी में तो अब भी नहीं छोड़ी है, लेकिन वह राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, इसलिए किस दल में हैं, इसकी चर्चा भी नहीं होती। भाजपा से उनके न जुड़ने का एक बड़ा कारण और था। नवीन जिंदल के गृहनगर हिसार के ही सुभाष चंद्रा के साथ उनका विवाद था।

सुभाष चंद्रा जी मीडिया (जी टीवी चैनल) और एस्सेल समूह के चेयरमैन हैं। जब दोनों के बीच विवाद हुआ तो नवीन कांग्रेस के सांसद थे। कांग्रेस सत्ता में थी। इसलिए चंद्रा उस समय कमजोर पड़ रहे थे। बाद में दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि 2014 के लोकसभा चुनावों में नवीन जिंदल को हराने के लिए सुभाष चंद्रा ने कुरुक्षेत्र में डेरा डाल दिया। नवीन हार गए।

कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव आए तो सुभाष ने नवीन की मां सावित्री जिंदल को हराने के लिए हिसार में डेरा डाल दिया। सावित्री जिंदल भी हार गईं। यह जिंदल परिवार के लिए बड़ा झटका था, लेकिन सुभाष चंद्रा को भी अपेक्षा के अनुरूप भाजपा में भी महत्व नहीं मिला।

2016 में राज्यसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने समर्थन दिया, लेकिन भाजपा प्रत्याशी चौधरी बीरेंद्र सिंह को प्रथम वरीयता के मत मिलने के बाद इतने मत ही न बचते कि सुभाष चंद्रा जीत पाते। इनेलो ने एक रणनीति के तहत अपने प्रत्याशी आरके आनंद को निर्दलीय के रूप में उतारा था। यानी एक भाजपा के घोषित प्रत्याशी के अतिरिक्त दो प्रत्याशी थे, दोनों निर्दलीय थे।

हरियाणा कांग्रेस के बड़े प्रभावशाली पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सुभाष चंद्रा के प्रति साफ्ट कार्नर रखते थे। कांग्रेस कहीं सुभाष चंद्रा का समर्थन न कर दे, इससे चिंतित नवीन जिंदल स्वयं सोनिया गांधी के घर गए। उसके बाद सोनिया ने आरके आनंद को समर्थन देने की घोषणा कर दी। इसके बाद आनंद की जीत सुनिश्चित लगने लगी थी, लेकिन चुनाव के दौरान हुड्डा समर्थक विधायकों के वोट रहस्यमय ढंग से अवैध हो गए

उन्होंने निर्वाचन आयोग की कलम का उपयोग नहीं किया था। नवीन जिंदल के लिए यह एक बड़ा झटका था, लेकिन कांग्रेस हाईकमान इस पर मौन साधे रहा। उसके बाद एक घटना और हुई। दिल्ली में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर पर हुड्डा गुट के लोगों ने हमला किया। फिर भी कांग्रेस हाईकमान मौन रहा और 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले विवश होकर तंवर ने कांग्रेस छोड़ दी। हुड्डा पर कांग्रेस हाईकमान वरदहस्त, भले ही मजबूरी में था और है, इससे नवीन जिंदल कांग्रेस से खिन्न भी हैं।

दूसरी तरफ जिंदल-चंद्रा के बीच सुलह हो गई। इसमें दिल्ली से सांसद चुने गए केंद्र सरकार के प्रभावशाली मंत्री पीयूष गोयल ने अहम भूमिका निभाई थी, ऐसा उद्योग जगत के लोग बताते हैं। सो, सुभाष चंद्रा से समझौते के बाद नवीन को भाजपा में आने में कोई अवरोध भी नहीं है। उनके बहनोई मनमोहन गोयल भाजपा में हैं। वह रोहतक के मेयर हैं। भाई प्रधानमंत्री के निकट हैं और सबसे बड़ी बात, प्रधानमंत्री नेशनल फ्लैग ब्वाय को खुद भाजपा में देखना चाहते हैं। वह नवीन से तब से प्रभावित हैं जब नवीन ने हर देशवासी को तिरंगा फहराने का अधिकार दिलाया था।

Avinash Kumar Singh

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Avinash Kumar Singh

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