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जहां चाह वहां राह : इस कहावत को इन्होंने कर दिखाया सच, शादी के 19 साल बाद बनेंगी रेवेन्यू ऑफिसर

अधिकांश लड़कियों का सपना ऊंची उड़ाने भरने का होता है। वह अपने जीवन में हर बुलंदियों को छूना चाहती हैं। बोकारो के सेक्टर दो बी की सुनीता कुमारी। उम्र करीब 41 साल। बचपन से ही जो सपना देखा था वह इस उम्र में आकर साकार कर लिया। वह कर दिखाया, जिससे वे आज सभी के लिए प्रेरणास्रोत बन गईं। जी हां, शादी के 19 वर्ष बाद बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 1267 वां स्थान हासिल कर सफलता पाई।

अपनी ज़िंदगी में आए हर लम्हे को खुलकर जीने का होता है, ताकि वे अन्य महिलाओं के लिए उदाहरण बन सकें। सुनीता ने गृहस्थ जीवन के साथ ही पढ़ाई के लिए भी वक्त निकाला और लक्ष्य पाया। अब वे रेवेन्यू ऑफिसर के पद पर योगदान करेंगी। सुनीता की सफलता की कहानी सुनकर हर कोई सराहना कर रहा है।

जहां चाह वहां राह : इस कहावत को इन्होंने कर दिखाया सच, शादी के 19 साल बाद बनेंगी रेवेन्यू ऑफिसरजहां चाह वहां राह : इस कहावत को इन्होंने कर दिखाया सच, शादी के 19 साल बाद बनेंगी रेवेन्यू ऑफिसर

अक्सर लड़कियों को शादी के बंधन में बंध जाने के उपरांत अपने सपनों को दबाए रखना पड़ता है। लेकिन सुनीता ने ऐसा नहीं होने दिया। सुनीता ने बताया कि प्लस टू उच्च विद्यालय सेक्टर नौ ए से 1998 में इंटरमीडिएट की परीक्षा विज्ञान विषयों से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। बचपन से सपना देखा था कि बड़ी होकर अधिकारी बन समाज की सेवा करूंगी। इसी बीच 2002 में बीएसएल कर्मी रवि शंकर से शादी हो गई। गृहस्थ जीवन में आईं तो पढ़ाई छूट गई।

उन्होंने अपना सपना नहीं छोड़ा। वह लगातार पढ़ाई में थोड़ा-बहुत ध्यान दे रहीं थीं। इस बीच पुत्री खुशी भारती व पुत्र रूपेश कुमार का जन्म हुआ। उनके साथ स्वजनों की देखभाल की जिम्मेदारी थी। इस फर्ज को निभाया। मगर सपना टूटा नहीं था, सो फिर हिम्मत की। सोच लिया था कि उम्र को बाधा न बनने देंगे। सास फूलमती देवी एवं पति ने हौसला बढ़ाया। विवाह के सात वर्ष बाद फिर कला वर्ग से स्नातक की पढ़ाई शुरू की। 2011 में स्नातक हो गईं।

आज सुनीता कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गयी हैं। सुनीता ने यह कर के दिखाया है कि शादी के बाद भी महिलाएं सबकुछ हासिल कर सकती हैं। स्नातक के बाद वह इस काबिल हो गई थीं कि प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठ सकें। बस बीपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। घर का चूल्हा चौका करते थे। बच्चों व स्वजनों की देखभाल के बाद हर दिन सात घंटे पढ़ाई करते थे। पढ़ाई के लिए न दिन देखा न रात, और सफलता उन्हें मिल गयी।

Avinash Kumar Singh

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