पिता एक ऐसा शब्द जिसके पीछे पूरी दुनिया छोटी लगती है. आज अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस यानी फादर्स डे जून माह के तीसरे रविवार को मनाया जाता है, इस साल 20 जून 2021 को भारत समेत विश्वभर में मनाया जायेगा। पिताओं के सम्मान में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला यह एक खास पर्व है, अवसर है
क्योंकि पिता रिश्तों के शिखर होते हैं। हर पिता अपनी संतान को हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक, हितैषी, गुरु कोई हो ही नहीं सकता। हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवनभर परिस्थितियों के अनुसार ढलने और लड़ने के काम आते हैं।
उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। उनकी कुछ प्रमुख विशेषताएं उन्हें दुनिया में सबसे खास बनाती है जैसे- धीरज, संयम, अनुशासन, त्याग, बड़ा दिल, प्रेम, स्नेह एवं गंभीरता।
लेकिन जीवन एक समान नहीं रह पता है न जाने ऐसे कितने लोग होते है जो अपने पिता को खो देते है। उस स्थान पर पिता का रूप एक माता भी लेती है दोहरी जिम्मेदारी के साथ माँ अपने बच्ची की पिता भी बन जाती है और जीवन के भोज के साथ अपना कर्तव्य निभाते है आज ऐसी ही कुछ महिलाओ की कहानी जो अपने बच्चो को पिता बनकर पाल रही है
फरीदाबाद की उन सभी मातृ शक्ति को प्रणाम जिन्होंने अपने अकेले ही अपने दम पर पिता की जिम्मेदारी निभाई
फरीदाबाद की मेयर सुमन बाला का कहना है की जब 2016 मे मेने अपने पति को खोया तो लगा की जीवन निराशा से भर गया हैं, उस समय कुछ समझ नहीं आया की क्या किया जाये ,बच्चो की तरफ देखती तो लगता की अब इनका क्या होगा , जब सभी राह बंद होती नजर आई तो लगा की अब खुद ही पिता की भूमिका निभानी होगी।
अपने बच्चे के आज से माता भी में हूं और पिता भी देखते ही देखते में कब अपने बच्चो की पिता बन गई पता ही नहीं चला। पिता बच्चों के लिए खुले आसमान की तरह होते हैं जिनके साथ दुनिया खूबसूरत लगती है
जीवन का दूसरा नाम ही संघर्ष है वो मैं करती गई , इस में बहुत लोगो ने सहयोग भी किया सभी का साथ पाया हिम्मत दुगनी हो गई। मेयर बनी पद की जिम्मेदारी और दूसरी तरफ़ माँ के रूप में पिता का कर्तयव दोनों ही निभाने में थोड़ी परेशानी हुई पर भगवन का साथ मिला और दोनों दायित्व निर्बहन का भरकस प्रयास किया , और आगे भी करती रहूंगी
सुषमा यादव् कहती है की मैं मानती हूं कि पिता अपने परिवार के लिए एक मजबूत स्तंभ होता है एक पिता हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए अपने बच्चों के लिए एक रोल मॉडल भी बनता है लेकिन जब किसी घर में पिता का साया उठ जाता है तो एक मां ही माता पिता की दोनों भुमिकाओं को निभाती है तब ये बहुत जरूरी हो जाता है कि मां बस मां ना होकर अपने बच्चों के साथ पिता जैसा दोस्त भी बने,
जहां एक मां भावनात्मक अपने बच्चों से जुड़ती है वही एक पिता की तरह अपने बच्चों को सही गलत का अहसास कराएं ,उन्होंने दुनियादारी सिखाए साथ ही घर परिवार की जिम्मेदारियों का अहसास भी कराएं क्योंकि जब तक बच्चों के साथ पिता का साया रहता है तब तक बच्चे हम जिम्मेदारी से आजाद रहते हैं, लेकिन जब पिता का साया उठ जाता है तब बच्चों को सही दिशा देना बहुत जरूरी हो जाता है और ये काम एक मां को ही निभाना पड़ेगा
गीता बल्लभगढ़ के रहने वाली है उसकी 2000 में शादी हुई थी 2009 में उसके पति की एक्सीडेंट की चक्कर के चलते मौत हो गई थी शादी से पहले वह दसवीं पास थी जब पति की मौत हुई उसके बाद उसने 12वीं पास कर लिया और बीए करें और उसके बाद उसने कंप्यूटर का डिप्लोमा करा और अब वह बीके में कार्यरत है ।
उस समय उनके बच्चों की उम्र 5 साल और 7 साल थी उसके ससुराल वाले ने उसको सपोर्ट नहीं करा लेकिन उसके मायके वाले उसको पूरा सपोर्ट करा और अब बच्चे उसके बड़ा बेटा 12वीं पास कर चुका है और छोटी बेटी 12वीं क्लास में पढ़ाई कर रही है।
गीता का सफर कठिनाईओ से भरा था लेकिन उन्होंने कभी हार नही मानी और अपने बच्चो के सपने पूरे करने में जुट गई
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