महामारी की दूसरी लहर मे पूरा देश ऑक्सिजन की किल्लत से गुज़र रहा था। जहाँ एक तरफ लोग ऑक्सिजन की कमी की वजह से दम तोड़ रहे थे वहीं सियासी पार्टियां ऑक्सिजन की किल्लत के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रही थी। लेकिन अब एक ऐसी खबर निकल कर सामने आ रही है जिसे सुनकर दिल्ली सरकार यानि आम आदमी पार्टी पर कई सवालिया निशान खड़े हो रहे है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऑक्सीजन की किल्लत के मद्देनजर बनाई गई राष्ट्रीय कार्यकारी समिति यानी एटीएफ की एक उप समिति ने अपनी रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार पर जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन मांगने का आरोप लगाया है। केजरीवाल सरकार पर आरोप है कि जब पूरा देश ऑक्सीजन की किल्लत से जूझ रहा था तब केजरीवाल सरकार दबाव बनाकर जरूरत से 4 गुना ज्यादा ऑक्सीजन ले रही थी। दिल्ली सरकार के इस मांग के चलते हरियाणा ,उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब ,उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर समेत 12 राज्यों को ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ा।
अपनी 23 पेज की रिपोर्ट में उपसमिति ने कहा है की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली सरकार ने बेवजह जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन की मांग दिखाई और आवंटन के लिए जबरन दबाव बनाया। रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि दिल्ली सरकार जितनी ऑक्सीजन मांग रही थी उसका भंडारण करने के लिए उसके पास पर्याप्त सुविधाएं ही उपलब्ध नहीं थी जिसके कारण ऑक्सीजन टैंकरो को खाली करने में ज्यादा समय लग रहा था और इसकी वजह से दूसरे राज्यों में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो सकी।
रिपोर्ट के अनुसार यह पाया गया कि 25 अप्रैल से 10 मई के दौरान दिल्ली सरकार ने जितनी ऑक्सीजन मांगी वह निर्धारित फॉर्मूले से चार गुना अधिक है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली सरकार ने 1 दिन 1140 मीट्रिक टन की खपत की जरूरत बताई जबकि फॉर्मूले के अनुसार उस दिन सिर्फ 289 मेट्रिक टन की ही जरूरत थी। उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अगर इस खपत को बढ़ाकर 400 मैट्रिक टन भी कर दिया जाए तो भी इस बात पर सवाल उठता है कि दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मांगने की जरूरत क्यों समझी।
आपको बता दे विशेषज्ञों की राय पर केंद्र सरकार ने एक फॉर्मूला तैयार किया है जिससे ऑक्सीजन आपूर्ति को निश्चित किया जाता है। जबकि दिल्ली सरकार का कहना है कि उसने अपना ऑक्सीजन फॉर्मूला ICMR के कहने पर बनाया। परन्तु जब इस फार्मूले के बारे में सरकार से पूछा गया तब सरकार कोई भी जवाब देने में असमर्थ रही। इसके अलावा रिपोर्ट में नेगेटिव खपत की बात भी सामने आई।केंद्र सरकार के निर्धारित फार्मूले के हिसाब से गैर आइसीयू बेड पर भर्ती 50 फीसद मरीजों को ही ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। लेकिन दिल्ली सरकार ने यह दावा किया कि गैर आइसीयू बेड पर पड़े हर मरीज को ऑक्सीजन की आवश्यकता है।
उपसमिति की बैठक में पाया गया कि दिल्ली के कई अस्पताल जैसे सिंगल अस्पताल अरुणा असफअली ईएसआईसी मॉडल अस्पताल और लाइफ रे अस्पताल ने अपनी बेड क्षमता से ज्यादा ऑक्सीजन की मांग की। मामला सामने आने के बाद सियासत गरमा गई है जहाँ ऑक्सीजन के मुद्दे पर केंद्र की बीजेपी सरकार व दिल्ली सरकार के बीच एक जंग छिड़ गई है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने ऑक्सीजन की इस नाजायज़ मांग पर दिल्ली सरकार की नियत पर सवाल उठाए।
स्वास्थ्य मंत्री अनिल वीज ने कहा कि मानवता को सर्वोपरि रखते हुए हमने किसी को भी इलाज से नहीं रोका और सभी के लिए बेड व ऑक्सीजन की व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर भी लगाया लेकिन दिल्ली सरकार सिर्फ आरोप प्रत्यारोप का खेल खेलती रही व जबरन ऑक्सीजन को लेकर अफरातफरी का माहौल बनाती रही। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक समय पर हरियाणा को भी 300 मैट्रिक टन ऑक्सीजन की आवश्यकता थी परन्तु सिर्फ 232 मीट्रिक टन ऑक्सीजन ही उपलब्ध हो पा रही थी लेकिन फिर भी हरियाणा सरकार ने अपने संसाधनों का पूर्णतः इस्तेमाल करते हुए ऑक्सीजन की कमी को पूरा किया ऐसे में उन्होंने ये सवाल उठाए कि अगर दिल्ली में पहले ही दिन से ऑक्सीजन की इतनी किल्लत थी तो दिल्ली सरकार ने अपने संसाधनों का पूर्ण इस्तेमाल क्यों नहीं किया।
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