कहते हैं हौसले और मेहनत के बल पर दुनिया जीती जा सकती है। आपका हौसला कभी कम नहीं होना चाहिए। पुरुष प्रधान देश होने के बावजूद भी हमारे देश की महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधा-से-कंधा मिलाकर चल रही हैं। आज की हमारी यह पेशकश एक ऐसी महिला की है, जो देश की प्रथम महिला लोको पायलट हैं। उन्होंने उन सभी लोगों के मुंह पर जोड़दार तमाचा मारा है, जो महिलाओं को कमजोर समझते हैं।
रेलवे में ड्राइवर या लोको पायलट की नौकरी पर आमतौर पर पुरूषों का ही साम्राज्य रहा है। लेकिन इन्होंने इस इतिहास को अब बदल दिया है। हमारे देश की प्रथम महिला लोको पायलट सुरेखा यादव हैं। साल 1998 में सुरेखा ने सर्वप्रथम ट्रेन चलाया था। सुरेखा यादव का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक के किसान परिवार में हुआ। उनकी माता का नाम सोनाबाई और पिता का नाम रामचंत्र भोंसले हैं।
आज कई महिलाओं के लिए सुरेखा प्रेरणा बन गयी हैं। हर कोई इनसे प्रेरणा ले रहा है। सुरेखा ने “सैंट पॉल कॉन्वेंट उच्च विद्यालय” से अपनी शिक्षा ग्रहण की और आगे उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। वह सिर्फ पढ़ाई लिखाई में ही नहीं, बल्कि खेलकूद में भी हमेशा से अव्वल रही हैं। उनकी ख़्वाहिश शिक्षिका बनने की थी, लेकिन तक़दीर उन्हें कहीं और ले गई।
अगर कुछ करने का ठान लें हम तो वो काम हो ज़रूर सकता है। बस हमें सकारात्मक रहना चाहिए। 1987 में सुरेखा ने रेलवे का एग्जाम दिया था। जब रिजल्ट आया तो वह एग्जाम में सफल हो चुकी थीं। उस वक्त सुरेखा को इस पर तनिक भी विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने रेलवे में बतौर असिस्टेंट ड्राइवर ज्वाइन किया।
कभी हमें अपने लक्ष्य से नहीं भटकना चाहिए। दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है बसर्ते कोई भी वह सच्ची निष्ठा, मेहनत और लगन से किया जाय। सुरेखा ने बताया कि मौखिक एवं लिखित परीक्षा के दौरान मैं ही एक महिला कैंडिडेट वहां मौजूद थी। मुझे यह नहीं पता था कि इंडियन रेलवे में कोई महिला अभी तक ट्रेन ड्राइवर बनी है। मुझे अपने देश के लिए बहुत कुछ करना था और मैंने इसमें पहला कदम उठाया।
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