फरीदाबाद जिले के मांगर पहाड़ी जंगल में प्रौगैतिहासिक पाषाण युग का पुरापाषाण स्थल मिला है। संभावना जताई जा रही है कि यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा और सबसे पुराना स्थल हो सकता है। यह प्रौतिहासिक पाषाण युग स्थल संभवत: दस लाख वर्ष से अधिक पुराना है।
मई 2021 में पर्यावरण कार्यकर्ता सुनील हरसाना ने इस स्थान पर मौजूद गुफा चित्रों की ओर पुरातत्व विभाग का ध्यान आकृष्ट किया। सुनील 10 वर्षों से अधिक समय से मंगर गांव में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हैं। हरियाणा पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के उप-निदेशक बनानी भट्टाचार्य के अनुसार, विभाग ने जून में गुरुग्राम में शिलाखरी, मंगर, कोट, धौज, रोज का गुर्जर और दमदमा सहित आसपास के क्षेत्रों का अध्ययन किया।
उन्होंने कहा कि इस खोज के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह स्थान भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़े पुरापाषाण स्थलों में से एक हो सकता है। यहां से कई स्थानों से खुले में और पत्थरों के नीचे से पाषाण युग के औजार बरामद किए गए थे। हालांकि पुरापाषाण युग के इन औजारों की पहचान अरावली के हिस्से के रूप में की गई है। यह पहला अवसर है, जब हरियाणा में बड़े पैमाने पर गुफा चित्र और पत्थर कला पाए गए हैं।”
सुनील कहते हैं, “पिछले 10 वर्षों से मैं इस मंगर गांव क्षेत्र को बचाने की कोशिश कर रहा हूं। इसके लिए मैंने कई संरक्षण गतिविधियों, दस्तावेजों और परियोजनाओं का संचालन किया है। मैंने इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के साथ तस्वीरें साझा की और उन्हें अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा किया। किसी ने पुरातत्व विभाग से संपर्क किया और उन्होंने इस जगह का दौरा किया।
जब हमने उन्हें गुफा चित्र दिखाए, तो उन्होंने पुष्टि की कि ये पेंटिंग प्राचीन हैं और जल्द ही वे उन पर काम करेंगे। गुफाओं पर कुछ शैल कला, पेंटिंग और स्क्रैचिंग है। यह बताना मुश्किल है कि ये किस तरह की पेंटिंग हैं, लेकिन कुछ आकृति या बनावट है।
जहां ये पेंटिंग मिली हैं, उस जगह तक पहुंचना मुश्किल है। कुछ नकारात्मक तत्व वहां जाते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई कलाकार वहां जाएगा और चित्रकारी करेगा। जिस शैली में पेंटिंग बनाई गई है वह बहुत अनोखी है। पेंटिंग गुफाओं के अंदर गहरे हैं, जहां केवल चमगादड़ रहते हैं।”
पुरातत्व विभाग की आगामी परियोजना का मुख्य उद्देश्य पाषाण युग के सभी स्थानों की पहचान करना और उनके संरक्षण पर विचार करना, विशेष रूप से वह क्षेत्र जो ‘गैर मुमकीन पहाड़’ के अंतर्गत आता है। कुल क्षेत्रफल लगभग 4,800 हेक्टेयर है। इसके लिए इस स्थान के संरक्षण एवं प्रबंधन की योजना तैयार की जाएगी।
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