फरीदाबाद :- जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए फरीदाबाद द्वारा ‘कोविड-19 महामारी और उससे उपरांत उच्चतर शिक्षा संस्थानों में नई सामान्य परिस्थितियां’ विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी में आयोजित दो सत्रों में भविष्य का अध्ययन-अध्यापन तथा कोविड-19 महामारी के मद्देनजर विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को लेकर चर्चा की गई।
संगोष्ठी की शुरुआत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश कुमार ने अध्यक्षीय संबोधन से हुई, जिसमें उन्होंने सभी विशेषज्ञों और प्रतिभागियों का स्वागत किया और उच्चतर शिक्षा संस्थानों में महामारी से संबंधित मुद्दों और चिंताओं पर चर्चा की। संगोष्ठी के पहले सत्र में श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के कुलपति श्री राज नेहरू मुख्य अतिथि रहे और दूसरे सत्र में एमएनआईटी जयपुर के निदेशक प्रो. उदय कुमार मुख्य अतिथि रहे। संगोष्ठी में लंदन विश्वविद्यालय, लंदन से डॉ. लिंडा एमरेन-कूपर तथा रोमानिया की ऑरेल व्लाइकू युनिवर्सिटी से एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. डाना राड आमंत्रित वक्ताओं के रूप में आमंत्रित किया गया था।
डीन (क्वालिटी) और प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर प्रो. संदीप ग्रोवर ने बताया कि संगोष्ठी में देश के 16 अलग-अलग राज्यों के अलावा विदेशों से जर्मनी, नीदरलैंड, मलेशिया और थाईलैंड से प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। संगोष्ठी में लगभग 900 प्रतिभागियों आनलाइन प्लेटफार्म तथा यूट्यूब लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े।
इस अवसर पर बोलते हुए कुलपति ने प्रो. दिनेश कुमार ने कोरोना महामारी के दौरान बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी देने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी कार्याें से जुड़े तकनीकीविद्ों की भूमिका की सराहना की। इस अवसर पर उन्होंने मौजूदा परिदृश्य में शिक्षकों और विद्यार्थियों के समक्ष पेश आ रही प्रमुख चुनौतियों की पहचान करने और इन चुनौतियों का समाधान प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया। कुलपति ने प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षण-अध्ययन प्रणाली के लिए मजबूत बुनियादी संरचना विकसित करने पर बल दिया तथा कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विद्यार्थी और शिक्षक उच्चतर शिक्षा में आ रहे डिजिटल परिवर्तन के लिए पूरी तरह से तैयार हो।
साथ ही, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा की पहुंच शत-प्रतिशत विद्यार्थियों तक हो और एक भी विद्यार्थी संसाधनों के आभाव में पीछे न रहे। इसके अलावा, उन्होंने ऑनलाइन मोड का उपयोग करते हुए विद्यार्थियों के कौशल प्रशिक्षण देने के तौर-तरीके खोजने पर भी बल दिया। कुलपति ने शिक्षण संस्थानों द्वारा विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए नई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि श्री राज नेहरू ने शिक्षण-अध्ययन के अचानक डिजिटल प्लेटफार्मों पर आने से शिक्षा क्षेत्र के सामने आई नई चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि इस समय विद्यार्थियों और शिक्षकों पर डिजिटल प्लेटफार्मों को सामान्य कक्षा की भांति लेकर चलने तथा जुड़ाव बनाने को लेकर दबाव है। यह एक नई शिक्षा पद्वति के रूप में विकसित हो रही है, जिसमें विद्यार्थियों के पढ़ने और सीखने की शैली भी बदल रही है। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के शिक्षार्थी डाउनलोड या निर्देशन को पसंद नहीं करते हैं, इसलिए, शिक्षकों को शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाने के लिए टीच-बैक विधि को अपनाना चाहिए। उन्होंने नई अध्यापन विधियों में स्थान-आधारित शिक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया।
अपने आमंत्रित व्याख्यान में डॉ. लिंडा एमरेन-कूपर ने लंदन विश्वविद्यालय द्वारा चलाए जा रहे दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम के अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि लंदन विश्वविद्यालय 160 वर्षों से दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम चला रहा है और लगभग 190 देशों में विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान कर रहा है। उन्होंने बताया कि कई वर्षों से ऑनलाइन लार्निंग का अनुभव होने के कारण विश्वविद्यालय के अध्यापन कार्य को महामारी ने ज्यादा प्रभाव नहीं किया है। लेकिन विश्वविद्यालय का मूल्यांकन अनुभव तीन महीनों में काफी बदल गया है क्योंकि 23 अलग-अलग समय क्षेत्रों में उन्हें अब आनलाइन परीक्षाएं आयोजित करनी होंगी। डाॅ. कूपर ने कहा कि ऑनलाइन टीचिंग लर्निंग में यह समझना चुनौतीपूर्ण है कि यह कितना प्रभावी रूप से विद्यार्थियों को शिक्षा में सक्रिय रूप से आकर्षित कर सकता है। शिक्षा के प्रति विद्यार्थियों के जुड़ाव में ही दूरस्थ तथा आनलाइन शिक्षा की सफलता निहित है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार ऑनलाइन कार्यक्रमों में अन्तरक्रियाशीलता द्वारा विद्यार्थियों में जुड़ाव और अध्ययन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
सत्र को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से प्रो0 सीमा मलिक, आईबीएम, सिंगापुर से श्री संजीव अग्रवाल, एमएचआरडी के इनोवेशन सेल के इनोवेशन डायरेक्टर डॉ. मोहित गंभीर, बीएचयू, वाराणसी के मनोविज्ञान विभाग से प्रो. राकेश पांड्ेय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आईआईटी, रुड़की से प्रो. प्रविन्द्र कुमार, जेसी बोस विश्वविद्यालय से प्रो. कोमल भाटिया, डॉ. नीलम दूहन और डॉ. प्रदीप डिमरी ने भी संबोधित किया।
सत्र के अंत में कुलसचिव डाॅ. सुनील कुमार गर्ग तथा डीन (स्टूडेंट्स वेलफेयर) डॉ. लखविंदर सिंह ने आमंत्रित वक्ताओं धन्यवाद किया।
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