क्या आप जानते है कि अंडर वर्ल्ड का सबसे पहला डॉन कौन था? यदि आप कहेंगे कि हाजी मुस्तान मिर्ज़ा, तो दोस्तों आपको बता दूँ कि मुंबई का सबसे पहला माफिया डॉन हाजी मुस्तान मिर्ज़ा नहीं बल्कि करीम लाला था ! वो करीम लाला जिसके नाम का आतंक पूरी मुंबई शहर फैल रखा था जिसे खुद हाजी मुस्तान भी असली डॉन मानता था ! सात फुट का करीम लाला सफ़ेद पठान सूट पहनकर निकलता था तो रास्ते में वही आता था जिसे बदनसीबी उन्हें खींच लाए.
एक वक़्त वो भी आया जब करीम को अपने मंसूबे पूरे करने के लिए बाहर निकलने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती थी. करीम लाला अपने साथ रखता था एक काली छड़ी. उसका मानना था कि छड़ी से उसकी शख्सियत में और रुआब आता है. बाद में वो छड़ी ही करीम लाला मानी जाने लगी. जब कहीं किसी जगह को कब्ज़ा करना होता था तो करीम लाला के गुर्गे उसकी छड़ी ले जाकर वहां रख देते थे. करीम लाला को मालूम था कि छड़ी को हाथ कोई लगाएगा नहीं.
करीम लाला का पूरा नाम अब्दुल करीम शेरखान था बाद में करीम लाल हो गया ! करीम लाला का जन्म साल 1911 में अफगानिस्तान के कुनार प्रान्त में हुआ था ! करीम को पश्तून समुदाय के आखिरी राजा भी कहा जाता है ! करीम का परिवार एक बड़ा कारोवार चलाता था इनके परिवार के पास काफी पैसा था !
करीम अपनी ज़िन्दगी में एक कामयाम इंसान बनाना चाहता था, और खूब पैसा कमाना चाहता था ! जिसकी बजह से वो अपने परिवार के साथ भारत के मुंबई शहर में आ गया जहाँ उसने अपने 2 कारोवार शुरू किये ! लेकिन ये कारोवार तो केवल एक दिखावा थे असल ज़िन्दगी में उसका कारोवार यहाँ मुंबई शहर से हीरो और जवाहरात की तस्करी करने का काम था !
जिसमे करीम को खूब मुनाफा भी हुआ और कुछ ही समय के बाद वो तस्करी के धंधे में किंग के नाम से मशहूर हो गया ! उसका कारोवार बढ़ता गया और उसने धीरे धीरे मुम्बई में दारु औए जुआ खेलने के लिए क्लब खोल दिए ! पूरी मुंबई उसके गैर क़ानूनी धन्दो से वाकिफ थी ! लेकिन इस बिजनस ने करीम गरीब और जरुरत मंद लोगो की सहायता भी करता था!
1940 के दशक में मुंबई शहर पर 3 डॉन का राज़ था जिनमें करीम, हाजी मुस्तान और वर्धा राजन शामिल थे इन्होने आपस में इलाको को बाँट लिया जहाँ इनका व्यापार बिना खून खराबे के चलता था ! बस फिर कुछ समय बाद मुंबई पुलिस के हेड कांस्टेबल इब्राहीम कासकर के बेटे दाउद इब्राहीम कास्कर और शबीर इब्राहीम कास्कर भी तस्करी के धंधे में आ गए !
जैसे ही इन दोनों ने तस्करी का काम शुरू किया वैसे ही इन दोनों भाइयो ने मिल कर करीम लाला को चुनोती दे दी ! जिसके लिये दाउद को काफी बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी !दरअसल करीम अपना काम बिना किसी खून खराबे के किया करता था लेकिन इस धंधे में दाउद की एंट्री होते ही खून खराबा होना शुरू हो गया !
दाउद ने बार-बार करीम लाला का रास्ता रोका. हर वो कोशिश की जिससे करीम लाला के सामने लोग दाउद का नाम लें. और यही कोशिशें बम्बई में गैंग वॉर लेकर आईं. करीम लाला और दाउद के बीच हुई ख़ूनी लड़ाइयों को ही पुलिस ने पहली बार गैंग वॉर कहा.
दोनों के बीच दुश्मनी इस कदर बढ़ गयी कि करीम लाला की पठान गैंग ने दाउद इब्राहीम के भाई शब्बीर इब्राहीम को मार डाला ! अपने भाई को मरता देख दाउद का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया, उसके सिर पर बस एक भी जूनून सवार था, करीम से अपने भाई की मौत का बदला लेना ! फिर शब्बीर इब्राहीम की मौत के ठीक 5 साल के बाद साल 1981 में दाउद इब्राहीम की गैंग ने करीम लाला के भाई रहीम खान की ह्त्या कर दी !
उसके बाद दोनों के बीच की दुश्मनी और भी ज्यादा बढ़ चुकी थी एक करीम लाला के हाथ जैसे ही दाउद इब्राहीम लगा तो करीम ने दाउद की इतनी ज्यादा पिटाई की थी कि दाउद के शरीर पर काफी गहरी चोटें लगी थी दाउद को पड़ी उस पिटाई के चर्चे आज भी मुम्बई शहर मे होते है !
लेकिन इसके बाद करीम लाला की गैंग को दाउद के गुंडों ने धीरे धीरे ख़त्म कर दिया और अंत में अंडर वर्ल्ड पर राज़ करने वाला करीम लाला की भी मृत्यु हो गयी ! पचास के दशक से अस्सी के दशक तक बम्बई पर करीम लाला ने शान के साथ राज किया था. लेकिन जब तक करीम लाला ज़िंदा रहा उसने दाउद इब्राहीम को चैन की नींद नहीं सोने दिया
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