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7000 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है यह दूध, कैंसर ठीक करने में भी किया जाता है प्रयोग

आपने गाय, भैंस, बकरी और ऊंटनी के दूध के बारे में तो सुना ही होगा। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे पशु के दूध के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आपने सोचा भी नहीं होगा। इसके दूध की कीमत बाजार में करीब सात हजार रुपए प्रति लीटर तक है। हम बात कर रहे है गधी के दूध की। हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीई) द्वारा इसके दूध पर शोध किया जा रहा है। देश में पहली बार इस पर रिसर्च किया जा रहा है।

वैज्ञानिक गधी के दूध में पाए जाने वाले पोषक तत्वों और माइक्रो न्यूट्रिएंट का पता लगाएंगे। अगर इसके दूध में यह सभी पोषक तत्व मिलते है तो यह कई बीमारियों में फायदेमंद सिद्ध हो सकता है।

7000 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है यह दूध, कैंसर ठीक करने में भी किया जाता है प्रयोग

वैज्ञानिकों ने बताया कि लिटरेचर माने तो गधी के दूध में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व भी पाए जाते हैं। इसके दूध का प्रयोग करके कई गंभीर बीमारियां जल्दी ही ठीक हो जाती हैं। यहां तक की कैंसर में भी गधी के दूध का प्रयोग किया जाता है। इन्हीं प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए वैज्ञानिकों ने एनआरसीई में यह डेयरी शुरू की है।

ध्यान देने योग्य यह है कि बाजार में गधी के दूध की कीमत सात हजार रुपए प्रति लीटर तक है। इस दूध से बनने वाले प्रोडक्ट्स जैसे साबुन, क्रीम, बॉडी लोशन इत्यादि कई गुना महंगी कीमत पर बिक रहे हैं।

जिन लोगों को गाय या भैंस के दूध से एलर्जी है वो गधी के दूध का प्रयोग कर सकते हैं। इसके दूध से किसी प्रकार की एलर्जी नहीं होती। यह इंसान के दूध की तरह ही होता है। इसमें वसा की मात्रा भी बहुत कम होती है।

18 पशुओं से की गई शुरुआत

एनआरसीई में डेयरी खोलने की योजना पहले ही तैयार कर ली गई थी। इसके लिए गुजरात से हलारी नस्ल की गधियां भी मंगवा ली गई थी। 18 पशुओं से डेयरी की शुरुआत की गई। इसमें गुजरात की हलारी नस्ल की गधियां हैं। लेकिन महामारी की वजह से डेयरी की यह योजना शुरू नहीं हो पाई। इसलिए शुक्रवार से डेयरी शुरू की गई।

जेनी दूध डेयरी है नाम

इसका नाम जेनी दूध डेयरी रखा गया है और इसका शुभारंभ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से उप महानिदेशक डॉ. बीएन त्रिपाठी द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि इस डेयरी में हुए शोधों से गधी के दूध के अनजाने रहस्यों से पर्दा उठ सकेगा। वहीं लोगों को गधी के दूध की महत्ता समझ आएगी जिससे गधी की देसी नस्लों को भी बढ़ावा मिलेगा।

Avinash Kumar Singh

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