दुनिया में मां की ममता अनमोल है। कोई उसकी जगह नहीं ले सकता। लेकिन कई बार बच्चे बड़े होते होते अपनी मां की ममता को भूल जाते हैं। कहा जाता है कि शादी के बाद बेटा बदल जाता है। वह अपनी पत्नी को मां से ज्यादा तवज्जो देता है। कई बार तो ऐसा भी देखने को मिला है कि पत्नी के कहने पर बेटा अपनी मां को घर से बाहर भी निकल देता है, उसे दाने दाने का मोहताज बना देता है।
राजस्थान के भरतपुर के हलेना क्षेत्र के गांव हिसामड़ा की रहने वाली महादेवी ने अपने दोनों बेटों को बड़े लाड प्यार से पालपोस कर बड़ा किया। दोनों भारतीय वायु सेना में नौकरी कर रहे हैं। उसके बाद दोनों की शादी हुई और दोनों की पत्नियां भी सरकारी नौकर थी।
यह महादेवी की बदकिस्मती है कि उसके दोनों बेटे मां की ममता को भूल गए। बेटा-बहू की सरकारी नौकरी होने के बावजूद वे अपनी मां को दो वक्त की रोटी तक नहीं खिला सकते। मजबूर मां संभागीय आयुक्त पीसी बेरवाल की जनसुनवाई में 30 किलोमीटर का पैदल चलकर यहां तक पहुंची और संभागीय आयुक्त के सामने अपनी पीड़ा बताई।
संभागीय आयुक्त की जनसुनवाई में सुनाई अपनी पीड़ा
संभागीय आयुक्त पीसी बेरवाल की जनसुनवाई में महादेवी ने अपना दर्द बयां किया। उन्होंने बताया कि रुपए नहीं होने की वजह से वह अपने गांव हिसामड़ा से 30 किलोमीटर का पैदल चलकर यहां तक पहुंची हैं। महादेवी ने बताया कि उसके दो बेटे हैं दोनों वायु सेना में नौकरी करते हैं। दोनों की पत्नियां भी सरकारी नौकरी करती हैं।
पिता की मौत के बाद मां को भूले बेटे
करीब डेढ़ साल पहले महादेवी के पति धर्मसिंह की मौत हो गई थी। मौत से पहले धर्म सिंह ने अपने बेटों से लिखित में आश्वासन लिया था कि वो अपनी मां की देखभाल करेंगे और हर महीने उसके भरण-पोषण के लिए 6-6 हजार रुपए देंगे, लेकिन पिता की मौत के बाद से ही दोनों बेटों और बहू मां को भूल गए। अब हालात इतने खराब हैं कि महादेवी को दाने-दाने के लिए मोहताज होना पड़ रहा है।
एसडीएम को बेटों को पाबंद करने के दिए निर्देश
पीड़िता महादेवी ने बताया कि जब बेटे-बहू ने दो वक्त की रोटी देने से इन्कार कर दिया तो गांव में ही रह रही महादेव की बहन ने उन्हें सहारा दिया। अब महादेवी अपनी बहन के घर रहकर गुजर बसर कर रही है।
पीड़िता की बात सुनकर संभागीय आयुक्त पीसी बेरवाल ने संबंधित एसडीएम को निर्देश दिए हैं कि वह 15 दिन के अंदर पीड़िता के दोनों बेटों को पाबंद कर भरण पोषण की व्यवस्था कराएं।
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