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एक ऐसी तोप जो 400 सालों में एक ही बार चली, जहां गिरी वहां बन गया कुछ ऐसा नज़ारा

मानव सभ्यता के विकास के साथ ही वर्चस्व की लड़ाई भी शुरू हो गई थी। पहियों पर रखी हुई दुनिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण देखनी है तो चले आये जयपुर के समीप जयगढ़ किले पर। अगर विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में देखें तो, जनसंख्या बढ़ जाने के कारण भोजन तथा आवास के लिए प्राणियों में एक सक्रिय संघर्ष उत्पन्न होता है, जिसे जीवन-संघर्ष कहते हैं। हम यहां आपको भोजन और आवास से जुड़े संघर्ष के बारे में नहीं बल्कि एक दूसरे ही प्रकार के संघर्ष के बारे में बताने जा रहें।

इतिहास के कई रहस्य और प्रसंगों को खुद में समेटे शान से खड़ा है पिंकसिटी से 14 किमी दूर जयगढ़। तमाम घातक हथियारों के जरिए दुश्मन सेना के दांत खट्टे किए जाते थे। जी हां यह संघर्ष है वर्चस्व की लड़ाई का, दूसरे के ऊपर अधिपत्य स्थापित करने का। बता दें कि इस काम के लिए प्राचीन समय मे तोप को सबसे घातक हथियार माना जाता था। ऐसा हथियार, जिसमें बारुदी गोले को रखकर दूर तक फेंका जा सकता था।

यही वह किला है जिसमें एशिया की सबसे बड़ी तोप है। लाखो पर्यटकों की पसंद जयबाण तोप का निर्माण 1720 ई. में जयपुर के मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा मुगल राजा मोहमद शाह के समय करवाया गया था। विश्व की सबसे बड़ी यह तोप जयगढ़ किले के डूंगर दरवाजे की बुर्ज पर स्थित है। अधिक बवजन होने से इसे कभी किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न कभी यह किसी युद्ध में काम मे लाई गई। यह दुनिया में सबसे प्रसिद्ध तोप है।

यही वह किला है जिसमें खजाने की खोज के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुदाई करवाई थी। जयबाण एक दोपहिया गाड़ी पर स्थित है। पहियों व्यास में 4.5 फीट हैं। गाड़ी परिवहन के लिए दो हटाने योग्य अतिरिक्त पहिये लगाए गए हैं। इन पहियों का व्यास 9.0 फुट हैं। इस तोप से 100 किलोग्राम गनपाउडर से बना 50 किलोग्राम वजन का गोले दागा जा सकते था।

राजस्थान का यही वह दुर्ग है जिस पर ब्राह्य आक्रमण कभी नहीं हुआ। इतना ही नहीं तोप ऐसा हथियार रहा है, जिसमें जंग के दौरान भारी तबाही मचाने की पूरी क्षमता थी। कई बार यह जंग की तस्वीर और परिणाम पूरी तरह पलट देता था। आज भी सभी देश जंग में तोप का इस्तेमाल जरूर करते हैं। हां, अब यह तोप काफी अत्याधुनिक और पहले से अधिक खतरनाक हो गई है। मगर यह जानकर आप हैरान होंगे कि 13 वीं और 14 वीं सदी में तोप का इस्तेमाल शुरू हो गया था।

Avinash Kumar Singh

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