हरियाणा – उत्तर प्रदेश सीमा विवाद का समाधान होने से पहले ही एक बार फिर से लटक गया है, जिसका सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को बताया जा रहा है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगते हरियाणा के कुल छः जिलों में से पांच जिलों के किसान इससे काफी परेशान हैं।
पिछले 42 वर्षों से प्रत्येक वर्ष एक ही समस्या से जूझते किसानों की समस्या का समाधान उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव तक टल चुका है। अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद ही किसानों की समस्या का समाधान संभव हो पाएगा।
गौरतलब है कि पांच दशक पहले 15 सितंबर 1975 को हरियाणा व उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों की सीमाएं तय की गई थीं। उसके बाद वर्ष 1979 में दोनों राज्यों को तारबंदी कर चिन्हित करने का निर्णय हुआ था। वर्षों से लटकते आ रहे इस निर्णय पर फैसले लेने के लिए 14 दिसंबर 2019 को लखनऊ में दोनों राज्यों के सीएम के बीच बैठक हुई।
बैठक में दोनों राज्यों के सीएम की आपसी सहमति से सीमा विवाद सुलझाने हेतु भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा दोनों राज्यों की सीमा का सर्वेक्षण कराए जाने का निर्णय लिया गया। सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अनुसार दोनों राज्यों की सीमा पर पिलर लगवाने का काम भी शुरू किया गया। इससे यदि यमुना नदी का बहाव बदलता है
तो पिलर द्वारा यह जानने में आसानी ही जाती कि वह जमीन किस राज्य की है। लेकिन पिलर लगाए जाने का कार्य अभी पूरा नहीं हो पा रहा है, फिलहाल जिसका सबसे बड़ा कारण अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को बताया जा रहा है।
हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का इस बारे में कहना है कि बहुत ही लंबे समय से चले आ रहे हरियाणा – उत्तर प्रदेश सीमा विवाद को सुलझाने के लिए हमने पहल की है। उन्होंने कहा कि पिलर लगाए जाने के बाद यदि यमुना नदी का बहाव बदलता भी है तो जमीन को पहचानने में कोई समस्या नहीं आएगी। इसका मुख्य कारण पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज की ओर से तैयार किए गए विशेष आकर के पिलर हैं। ये पिलर इतने ऊंचे होंगे कि इनसे निशानदेही करना आसान होगा।
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