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शादी में कन्‍यादान का होता है ये खास म‍हत्‍व, जानिए इसके पीछे का वैज्ञानिक रहस्य

कन्यादान का बहुत बड़ा महत्व होता है। शादियों में तमाम रस्‍म और रिवाज निभाने के बाद ही विवाह को पूर्ण माना जाता है। सोशल मीडिया पर काफी समय से कन्यादान रस्म पर बहुत बहस हो रही है। सबसे हास्यास्पद बात ये है कि हमारी कन्यादान रस्म पर प्रश्न चिन्ह वे लगा रहे हैं, जो खुद मजहब के नाम पर दिन रात अपने घर की ख़्वातीनों का हलाला करवाते हैं।

उनके धर्म में नहीं देखा जाता है कि लड़की कौन है? वह लोग अपनी बेटी और बहन से भी शादी कर लेते हैं। इतना ही नहीं वो लोग अपनी माँ को भी नहीं छोड़ते हैं। उन लीचरों की फालतू बातों का जबाब देकर अपना समय नष्ट करना उचित नहीं है।

हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं जो सनातन धर्म को मानते हुए भी इससे अनजान रहते हैं। इसलिए हमारे अपने लोगों को ये जानकारी जरूर होनी चाहिए कि आखिर ये कन्यादान क्या है। असल में कन्यादान की रस्म पूरी तरह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया का नाम है। हम सभी जानते हैं कि हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है। उसे गोत्र का वाहक माना जाता है।

कोई भी शादी तब तक पूरी नहीं मानी जाती जब तर उसमें कन्यादान की रस्म ना की जाए। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है। इसका कारण पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया में छुपा विज्ञान है। अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि एक स्त्री में गुणसूत्र XX होते है और, पुरुष में XY होते है।

इस बात को सरल तरीके से समझा जाये तो मतलब यह हुआ कि अगर पुत्र हुआ जिसमें XY गुणसूत्र है, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नहीं है। यदि पुत्री हुई तो तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है। तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे, Crossover कहा जाता है।

कन्‍यादान का अर्थ होता है कन्‍या का दान। इसका मतलब होता है कि पिता ने अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथों में सौंप दिया है। पुत्र में XY गुणसूत्र होता है। जैसा कि पहले ही बताया कि पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है। दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नही बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है। 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों ही बना रहता है।

कन्यादान करना हर माता पिता के लिए बहुत सौभाग्य की बात होती है। अगर देखा और समझा जाये तो महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है। इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था।

कहते हैं जो माता-पिता अपनी बेटी का कन्यादान करते हैं उनके लिए स्वर्ग का रास्ते हमेशा के लिए खुल जाते हैं। आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगोत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था। इस्लाम के लोग जन्मजात मूर्ख होने का भी यही प्रमुख कारण है क्योंकि, वे अपनी माँ, बहन, मौसी और चाची तक से बच्चा पैदा करने में गुरेज नहीं करते। हिंदु धर्म में शादी की कई रस्में निभाई जाती हैं लेकिन इन सब में सबसे अहम होती है कन्यादान की रस्म।कहते है अगर शादी की सारी रस्में हो और कन्यादान ना किया जाए तो शादी अधूरी समझी जाती है। 

Avinash Kumar Singh

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