काफी समय पहले बाल विवाह एक बहुत ही प्रचलित प्रथा थी। नाबालिक लड़के और लड़की की शादी कर दी जाती थी। लगभग हर घर में बच्चों का बाल विवाह करा दिया जाता था। छोटी उम्र होने के कारण उन्हें अपने जीवन में अनेकों मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। जिस उम्र में आज बच्चे अपना करियर शुरू करते है उस उम्र में उनकी शादी हो जाती थी और सारे सपने धरे के धरे रह जाते थे। पर कहते है ना, समय अच्छा हो या बुरा, बदलता जरूर है।
आज के जमाने में बाल विवाह जैसी कुप्रथा भारत से लगभग समाप्त हो चुकी है और इसका बहुत बड़ा श्रेय जाता है शिक्षा और जागरूकता को। आज हम बात करेंगे राजस्थान के जयपुर जिले के चौमू क्षेत्र के करेरी गांव की रहने वाली रूपा यादव की, जिनका विवाह मात्र 8 वर्ष की उम्र में कर दिया गया था। शादी के समय उनके पति की उम्र भी 12 साल की थी।
अगर इंसान में कुछ कर गुजरने का जज्बा हों, तो हर कठिन परिस्थिति से लड़ते हुए इंसान अपना लक्ष्य हासिल कर ही लेता है। इतनी छोटी उम्र में विवाह होने के बाद एक छोटे से गांव में रहने वाला कोई बच्चा शायद ही अपने सपनो के बारे में सोचेगा। रूपा और उनकी बहन रुक्मा देवी की शादी एक साथ दो सगे भाइयों शंकरलाल और बाबूलाल के साथ हुई थी।
मौजूदा समय में ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी किस्मत के भरोसे बैठे रहते हैं। रूपा की दसवीं कक्षा का परिणाम उसके ससुराल जाने के बाद आया था और उसने 84% अंकों के साथ परीक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। इसे देखते हुए रूपा के जीजा बाबूलाल ने उसका एक प्राइवेट स्कूल में 12वीं में दाखिला करा दिया था। 12वीं में रूपा ने फिर से 84% अंक हासिल किए।
अगर कामयाबी सिर्फ किस्मत के सहारे मिलती तो इस दुनिया में ज्यादातर सभी लोग कामयाब हो जाते। रूपा की प्रतिभा को देख उसके पति ने उसे और आगे पढ़ाने का निर्णय लिया। टैक्सी चलाकर रूपा का पति उसके पढ़ाई का खर्च उठाता था। रूपा के ससुराल की आमदनी खेतों से ही होती थी और उस पैसे से उसकी पढ़ाई का खर्च पूरा नहीं हो पाता था इसलिए ही उसके पति ने टैक्सी चलाने का निर्णय लिया। रूपा के चाचा की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी जिसके बाद उसने यह ठान लिया कि वह डॉक्टरी की पढ़ाई करेगी और लोगों का इलाज करेगी।
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