केंद्र सरकार खेती करने वालों को नित – नए लाभ देती रहती है। लोग खेती की तरफ काफी रुझान दिखा रहे हैं। देश में लगभग 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती होती है, जिसमें 80 से 90 फीसदी उत्पादन अकेले बिहार में होती है। इसके उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सा मिथिलांचल का है। लगभग 120,000 टन बीज मखाने का उत्पादन होता है, जिससे 40,000 टन मखाने का लावा प्राप्त होता है।
सरकार लगातार किसानों के हित में काम कर रही है। मखाना कई प्रकार के पोषक तत्वों से भरपूर होता है। मखाना का बोटैनिकल नाम यूरेल फेरोक्स सलीब है जिसे आम बोलचाल की भाषा में कमल का बीज भी बोलते हैं। यह ऐसी फसल है जिसे पानी में उगाया जाता है। बिहार के मिथिलांचल में बड़े स्तर पर इसकी खेती होती है।
मखाना को फॉक्स नट और फूल मखाना के नाम से भी जाना जाता है। यह एक स्वादिष्ट और पौष्टिक खाद्य पदार्थ है। भारत में जिस तरह की जलवायु है, उस हिसाब से इसकी खेती आसान मानी जाती है। गर्म मौसम और बड़ी मात्रा में पानी इस फसल को उगाने के लिए जरूरी है। देश के उत्तर पूर्वी इलाकों में भी इसकी कुछ-कुछ खेती होती है। असम, मेघालय के अलावा ओडिशा में इसे छोटे पैमाने पर उगाया जाता है।
उत्तर भारत की बात करें तो गोरखपुर और अलवर में भी इसकी खेती होती है। जंगली रूप में देखें तो यह जापान, कोरिया, बांग्लादेश, चीन और रूस में भी पाया जाता है। मखाना एक ऐसा आहार है, जिसे आप कहीं भी, कभी भी स्नैक्स के रूप में खा सकते हैं। वर्ष 2002 में दरभंगा,बिहार में राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना की गयी थी।
मखाना स्वाद में बेहतरीन होता है, कई क्षेत्रों में मखाने की खीर भी लोकप्रिय है। माह में मखाना के पौधों में फूल आने लगते हैं. फूल पौधों पर 3-4 दिन तक टिके रहते हैं। इस बीच पौधों में बीज बनाने की प्रक्रिया चलते रहती बनते हैं।
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