Categories: India

मां बेचती थी चूड़ियां और भाई चलाता था रिक्शा, MPSC में टॉप कर किया परिवार का नाम रोशन

आज भी हमारे समाज के कुछ हिस्सों में महिलाओं को कमजोर समझा जाता है और उन्हें घर से बाहर कदम तक रखने नहीं दिया जाता। कहते हैं कि अगर आप में किसी चीज को पाने की ललक है और आप उसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं तो आपको उसे हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता। परिस्थितियां चाहे कितनी ही अच्छी या बुरी क्यों न हो आप अपनी मेहनत और लगन से सफलता हासिल कर सकते हैं।

सिविल सेवाओं की परीक्षा में हमने ऐसे उदाहरण बनाने वाले कई छात्र देखे हैं। जिन्होंने सभी मुश्किलों को पार करके सफलता हासिल की है।

मां बेचती थी चूड़ियां और भाई चलाता था रिक्शा, MPSC में टॉप कर किया परिवार का नाम रोशनमां बेचती थी चूड़ियां और भाई चलाता था रिक्शा, MPSC में टॉप कर किया परिवार का नाम रोशन

कुछ ऐसा ही कर दिखाया है महाराष्ट्र की वसीमा शेख ने। परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों अगर आपका लक्ष्य निर्धारित है तो निश्चित ही आपको सफलता मिलेगी।

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले की रहने वाली वसीमा शेख ने तमाम परेशानियों को झेलते हुए महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन (MPSC) की परीक्षा दी और समाज की अन्य महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की है। सिविल सेवाओं की परीक्षा में ऐसी सफलता पाने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

इन्हीं में से एक है वसीमा शेख, जिन्होनें महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में टॉप कर न सिर्फ अपना व अपने परिवार का बल्कि सभी रिश्तेदारों का भी नाम रोशन किया है। महिला टॉपर्स की लिस्ट में वसीमा ने तीसरा स्थान हासिल किया है। वसीमा उन लोगों के लिए एक मिसाल बन गई हैं, जो गरीबी या अन्य परेशानी के कारण बीच में ही हार मान जाते हैं।

आर्थिक तंगी के कारण कई स्टूडेंट्स अपने सपनो को पीछे छोड़ दूसरे रास्तों पर निकल पड़ते है। लेकिन सफलता अमीरी या गरीबी नहीं देखती, वह केवल हुनर की मोहताज है। जिसके पास गरीबी है, उसने भी अपने हुनर से बड़ी-बड़ी सफलता अपने नाम की। जिसके पास हुनर नहीं उसने अमीरी में भी कभी कोई सफलता हासिल नहीं की। ये तो केवल मेहनत न करने वालों की सोच है।

मराठी माध्यम से तैयारी करने वाली वसीमा शेख को महाराष्ट्र में डिप्टी कलेक्टर या उप जिलाधिकारी पद के लिए चयनित किया गया है। वसीमा की राह पर चलते हुए इनकी दो छोटी बहनें भी अब सिविल सर्विस की तैयारी कर रही हैं। वसीमा को सभी ने उनकी सफलता पर बधाईयां दी।

वसीमा अपने बीते दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि यह सफर बहुत मुश्किल भरा रहा लेकिन बचपन में जो उन्होंने संघर्ष किया था, उसी हिसाब से प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रही थीं तो इस कारण ज्यादा मुश्किल नहीं हुई।

https://twitter.com/munajir92/status/1277283867515408384?t=fYCC-heGyE5wmJSrRDDYhg&s=19

वसीमा महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के ग्रामीण इलाके से संबंध रखती हैं। लगभग 1500 की जनसंख्या वाले सांगवी गांव में वह 4 बहन और 2 भाई, माता-पिता के साथ रहते थे। उनके पिता की दिमागी हालत ठीक न होने के कारण घर की पूरी जिम्मेदारी उनकी मां के सिर आ गई। वे दूसरे लोगों के खेतों पर काम कर घर का खर्च चलाती थीं।

घर-घर जाकर चूड़ियां बेचा करती थी। जिससे वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाये। 10वीं तक कभी कभी वसीमा और उनके भाई–बहन भी उनके साथ जाते थे। लेकिन घर में ज्यादा लोग थे तो उन पर 6 भाई बहन थे, हम लोग तो जिम्मेदारी ज्यादा पड़ जाती थी। जब वह दसवीं में थी तो उनसे बड़े भाई जो तब बीएससी फर्स्ट ईयर में थे।

उन्होंने घर को सपोर्ट करने और पढ़ाई का खर्चा निकालने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ ई–रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। जिसके बाद मां और भाई ने मिलकर उनको पढ़ाया। उनकी 7वीं कक्षा तक की पढ़ाई बेसिक जिला परिषद के स्कूल में हुई। उसके बाद गांव में ही स्थित एक छोटे से प्राइवेट स्कूल से उन्होंने 10वीं की शिक्षा पूरी की।

उसके बाद 11 वीं की पढ़ाई के लिए गांव में स्कूल न होने के कारण रोज 6 किमी पैदल चलकर दूसरे गांव स्कूल जाना होता था। गांव में कोई पर्याप्त संसाधन भी नहीं थे। सवारी का भी कोई साधन नहीं था। साथ ही गांव से कोई लड़की पढ़ने के लिए नहीं जाती थी। जैसे-तैसे उन्होंने 11वीं की, फिर आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए नानी के यहां जाना उचित समझा।

https://twitter.com/AshokChavanINC/status/1274338839276908550?t=DZBrBFPvpEi-zYojicjx1w&s=19

फिर 12वीं में अपनी नानी के यहां एडमिशन लिया। हालांकि वहां भी स्कूल 10 किलोमीटर दूर था लेकिन वहां से आने-जाने के लिए लोकल बस की सुविधा उपलब्ध थी। तो उसी से रोजाना उनका आना जाना होता था। 12 वीं के बाद मैंने महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी से बीए में एडमिशन लिया और साथ साथ प्राइमरी टीचर के लिए एक डिप्लोमा बीपीएड किया।

गांव में लड़कियों को ज्यादा पढ़ने नहीं दिया जाता था, जिस कारण गांव की कोई लड़की उनके साथ पढ़ने नहीं जाती थी। वसीमा और उनके घरवालों को बाहर के लोगों का विरोध का सामना करना पड़ाता था। लेकिन उनके भाई और मां ने हमेशा सपोर्ट किया, कभी पढ़ने से नहीं रोका। हमेशा हौसला बढ़ाया।

एक समय ऐसा आया जब वसीमा ने सरकारी नौकरी या सिविल सर्विस में जाने के लिए विचार बना लिया। वह सोचती थी कि एक सरकारी अधिकारी को पूरा सिस्टम सपोर्ट करता है।

अगर एक सरकारी अधिकारी कोई एक अच्छा निर्णय लेता है, तो समाज के लाखों लोगों पर उसका पॉजिटिव असर पड़ता है। चूंकि वह एक ग्रामीण इलाके से संबंध रखती थीं तो उन्होंने लोगों की समस्याओं को बहुत पास से देखा है। छोटे-छोटे कामों के लिए उन्हें बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। तो उन लोगों की समस्याओं को कम करने के लिए वह यह काम करना चाहती थी।

ग्रेजुएशन के बाद 2016 में एमपीएससी परीक्षा (MPSC Exam) की तैयारी स्टार्ट कर दी थी। चूंकि सिविल सेवा की तैयारी के लिए कंसिस्टेंसी के साथ रोज 10-12 घंटे की पढ़ाई करनी होती है और वह माहौल उनको नांदेड़ में नहीं मिल पा रहा था। गाँव के लोग ताने देते थे, ऊपर से अपने ही समुदाय के लोग विरोध करते थे। तब उनके बड़े भाई उन्हें पुणे लेकर आ गए, जिससे यहां अच्छा माहौल, लाइब्रेरी वगैरह की सुविधा आसानी से मिल सके।

वसीमा अच्छे से पढ़ाई कर पाएं। इसका उनके बड़े भाई ने पूरा ख्याल रखा। वसीमा ने भी अपने भाई को निराश नहीं किया। फिर यहां किराए पर रहकर रोज 12-15 घंटे बिना कोचिंग के पढ़ाई की। दो साल बाद 2018 में नागपुर में सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर के लिए चयन हो गया था। जो उन्होंने जॉइन भी किया और अभी वह वहीं कार्यरत हैं।

अब चूंकि यह एक ऑफिस वर्क था और ज़मीन पर रहकर काम करना उनका जुनून था। फील्ड वर्क उनको काफी अच्छा लगता था तो साथ ही साथ डिप्टी कलेक्टर के लिए पढ़ाई भी जारी रखी, अपने सपने को बनाये रखा। बाद में वो महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन में महिला टॉपर्स लिस्ट में तीसरा नंबर लेकर आईं।

वसीमा 4 बहनों और 2 भाइयों में चौथे नंबर पर हैं। वसीमा अपनी कामयाबी का सारा श्रेय भाई और मां को देती हैं। उन्होंने कहा कि अगर भाई उनको नहीं पढ़ाते, तो वह इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती, मां ने बहुत मेहनत की। वसीमा नांदेड़ से लगभग 5 किमी दूर जोशी सख वी नामक गांव में पैदल पढ़ने जाती थीं।

डिप्टी कलेक्टर बनीं वसीमा कहती हैं कि आपको कुछ बनना है तो अमीरी-गरीबी कोई मायने नहीं रखती है। वसीमा अपनी मां और भाई को सफलता का श्रेय देती हैं। उनके परिवार ने पढ़ाई पर जोर दिया और उसी का नतीजा है कि उन्होंने इस परीक्षा में टॉप किया था। वसीमा की कहानी लाखों महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है।

PEHCHAN FARIDABAD

Published by
PEHCHAN FARIDABAD

Recent Posts

Special Child को पढ़ाने के लिए Faridabad में होगा यह काम, यहाँ पढ़े पूरी ख़बर 

शिक्षा पाने और ज्ञान अर्जित करने का अधिकार सभी बच्चो का होता है, अब चाहे…

2 days ago

Faridabad के इस स्टेडियम में बनेगा बैडमिंटन और वॉलीबॉल कोर्ट, FMDA ने शुरू की तैयारियाँ 

आए दिन खिलाड़ियों का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए प्रदेश…

2 days ago

Haryana के इस नगर के लोगों को मिलेगी उत्तराखंड के लिए सीधी ट्रेन, यहाँ जाने ट्रेन से जुड़ी सभी जानकारी 

प्रदेश के जो लोग ट्रेन से उत्तराखंड आते जाते रहते है, यह खबर उनके लिए…

2 days ago

Haryana की सोनी ने तोड़ा एशिया का रिकॉर्ड, यहाँ जानें आख़िर कौन है यह सोनी 

इन दिनों प्रदेश की सोनी एशिया का रिकॉर्ड तोड़कर पूरे में चर्चा का विषय बनी…

2 days ago

Haryana की कुछ ऐसी डरावनी जगह, जहां कर सकतें हैं आप एडवेंचर,जल्दी से यहां देखें लोकेशन 

अगर आप निडर है और कुछ एडवेंचर करना चाहते हैं।लेकिन आपकों कोई जगह नहीं मिल…

2 days ago

Faridabad वासियों को ज़रूर देखना चाहिए ये संग्रहालय, लोकेशन NCR के है बेहद पास

अगर आप दिल्ली में घूमने फिरने का प्लान बना रहे हैं तो आज हम आपकों…

3 days ago