महामारी कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया गया था। धीरे धीरे – अब लॉकडाउन में सरकार छूट देती जा रही है। महामारी के कारण लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर हमारे वातावरण और प्रकृति पर पड़ा है, दशकों से जो चिड़ियों की आवाज़ गायब थी वो सुनाई देने लगी है । शुद्ध हवा और शांत माहौल की बदौलत कई अच्छे बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसी दौरान चंबल नदी का तट भी विलुप्त होते जा रहे डायनासोर प्रजाति घड़ियालों के बच्चों से चहक उठा है।
राजस्थान के धौलपुर, मध्य प्रदेश के देवरी और उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के वाह इलाके में चंबल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र में घड़ियाल अभ्यारण्य बना हुआ है। माना जा रहा है कि देशव्यापी लॉकडाउन के कारण यह बड़ी खुशखबरी मिली है | महामारी ने बहुत से बदलाव मानव जाती पर किए हैं, ऐसे में राजस्थान के धौलपुर जिले में बहने वाली चंबल नदी का तट इस समय नवजात घड़ियालों से चहक उठा है जो कि एक सुखद खबर है | नेशनल चंबल सेंचुरी इन दिनों घड़ियालों की आवाज से गुंजायमान है | इस बार हजारों की तादात में घड़ियालों ने जन्म लिया है और ऐसा पहली बार हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में घड़ियालों ने जन्म लिया है | खास बात यह है कि ये घड़ियाल दुर्लभ डायनासोर प्रजाति के हैं | घड़ियाल देश दुनिया से विलुप्त होने की कगार पर खड़े हैं |
चंबल नदी में घड़ियालों की संख्या नवजात घड़ियालों से पहले 1859 थी | जन्म लेने वाले घड़ियालों के नवजातों को जोड़कर देखा जाए तो अब इनकी संख्या करीब तीन हजार के आसपास हो जाएगी। स्थानीय लोगों के अनुसार चंबल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र में घड़ियाल अभ्यारण्य बना हुआ है | धौलपुर और मध्य प्रदेश के देवरी के साथ उत्तर प्रदेश में आगरा जिले के वाह इलाके में घड़ियालों के रक्षण और कुनबा बढ़ाने के लिए काफी प्रयास किए जाते हैं | लोकल मीडिया के मुताबिक मध्य प्रदेश के देवरी और राजस्थान के धौलपुर रेंज में करीब 1100 से अधिक घड़ियाल के बच्चे अंडों से बाहर निकल आए हैं। आगरा के वाह से भी काफी अंडों से बच्चे निकल आए हैं। अगर इन बच्चों की लंबाई 1.2 मीटर होगी तो इन्हें नदी में छोड़ दिया जाएगा। कम लंबाई वाले बच्चों को अभ्यारण केंद्र में रखा जाता है और लंबाई पूरी होने पर चंबल नदी में छोड़ दिया जाता है।
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 1980 से पूर्व भारतीय प्रजाति के घड़ियालों का सर्वे हुआ था | उस वक़्त चंबल नदी में केवल 40 घड़ियाल ही मिले थे जबकि 1980 में इनकी संख्या 435 हो गई थी। उसी समय से इस इलाके को घड़ियाल अभ्यारण्य क्षेत्र घोषित किया गया था। स्थानीय लोगों ने बताया कि नदी के किनारे झुंड में इन बच्चों की उछल-कूद देखकर लोग बहुत खुश हो रहे थे। ऐसा पहली बार हुआ है, जब हजारों की तादाद में घड़ियाल के बच्चों ने जन्म लिया है। आपको बता दें कि अप्रैल से जून तक का समय घड़ियाल का प्रजनन काल रहता है। मादा घड़ियाल मई-जून में रेत में 30 से 40 सेमी का गड्ढा खोद कर 40 से लेकर 70 अंडे देती है। जब इन अंडों में सरसराहट शुरू हो जाती है, तो मादा रेत हटा कर बच्चों को निकालती है और चंबल नदी में ले जाती है।
लॉकडाउन ने इंसान को यह तो ज्ञात करवा ही दिया है कि प्रकृति को अगर हम संभाल न सके तो जीवन में बस रस ही रह जाएगा मिठास लुप्त हो जाएगी | धरती आपके पैरों को महसूस कर खुश होती है और हवा आपके बालों से खेलना चाहती है |
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