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बेटी को अमर करने के लिए साइकिल से शुरू किया था यह बिजनेस, आज हैं अरबों के मालिक

हर घर में वाशिंग पाउडर की जरूरत तो होती है। वाशिंग पाउडर से जुड़ी ऐसी ही एक कहानी हम आपको बताने जा रहें, जो आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देगी। जब एक पिता ने अपनी बेटी की याद में एक ऐसा बिजनेस शुरू किया जो धीरे-धीरे इतना मशहूर हुआ कि उसकी बेटी की तस्वीर घर-घर तक पहुँच गई और वह बिजनेसमैन भी करोड़पति बन गया। वैसे करोड़पति बनने की राह इतनी आसान भी नहीं रही। आइए जानते हैं क्या है पूरी कहानी…

कुछ समय पहले तक टीवी स्क्रीन पर यह विज्ञापन बड़ा पॉपुलर था कि, “दूध सी सफेदी निरमा में आए, रंगीन कपड़ा भी खिल-खिल जाए सबकी पसंद निरमा, वाशिंग पाउडर निरमा।”

बेटी को अमर करने के लिए साइकिल से शुरू किया था यह बिजनेस, आज हैं अरबों के मालिकबेटी को अमर करने के लिए साइकिल से शुरू किया था यह बिजनेस, आज हैं अरबों के मालिक

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं निरमा वाशिंग पाउडर की। जिसके विज्ञापन में एक लड़की की तस्वीर भी छपी होती है। ऐसे में शायद इस बच्ची की तस्वीर के बारे में कुछ लोगों को पता हो और बहुत से ऐसे भी होंगे। जो इसके बारे में जानना चाहते होंगे। तो आपको बता दें कि दरअसल, निरमा पाउडर के विज्ञापन पर छपी लड़की का नाम असल में ‘निरुपमा’ है। इनके नाम पर ही वॉशिंग पाउडर का नाम “निरमा” रखा गया।

निरुपमा से निरमा तक की कहानी भी काफी दिलचस्प और दुखदाई है। बता दें कि निरमा जब स्कूल में पढ़ती थी तभी एक कार हादसे में उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद करसनभाई और उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।

करसनभाई अपनी बेटी से बेहद प्यार करते थे। वो चाहते थे कि उनकी बेटी दिन दुनिया में ख़ूब नाम कमाए, लेकिन छोटी सी उम्र में बेटी की मौत ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। करसनभाई बेटी के जाने का गम भुला नहीं पा रहे थे।

ऐसे में उन्होंने निरुपमा के जाने के बाद बेटी के नाम को अमर बनाने और लोगों की जुबां पर लाने का दृढ़ निश्चय किया। उन्होंने पहले बेटी के नाम पर “निरमा” कंपनी’ की शुरुआत की। इसके बाद डिटर्जेंट के पैकेट पर बेटी की तस्वीर छाप कर उसे हमेशा के लिए अमर कर दिया।

मालूम हो कि इस निरमा वॉशिंग पाउडर की शुरुआत 1969 में हुई थी। जिसकी शुरुआत करने वाले करसन भाई पटेल गुजरात के रहने वाले थे। निरमा के पैकेट पर जो बच्ची नजर आती वो करसन भाई की बेटी है।

बता दें कि करसनभाई प्यार से अपनी बेटी को निरमा कहकर पुकारते थे। करसनभाई ने बेटी के नाम से ही निरमा कंपनी की शुरुआत की थी। करसनभाई पटेल ने 1969 में बेटी की याद में निरमा कंपनी तो खोल ली, लेकिन यह कारोबार करना और बेटी का नाम एक बिज़नेस के माध्यम से अमर बनाना इतना भी आसान नहीं था।

बेटी कि मौत के बाद तीन साल तक करसनभाई ने एक अनोखे वॉशिंग पाउडर का फॉर्मूला तैयार किया और धीरे–धीरे पाउडर की बिक्री शुरू कर दी। लेकिन इस बीच करसनभाई ने अपनी सरकारी नौकरी नहीं छोड़ी।

गौर करने वाली बात यह है कि करसनभाई उस दौरान अपनी साइकिल से आफिस जाया करते थे और रास्ते में ही लोगों के घरों में निरमा वॉशिंग पाउडर बेचते थे। उस वक्त तक बाजार में सर्फ (surf) जैसे पाउडर आ चुके थे।

इनकी कीमत 15 रुपये प्रति किलो थी जबकि निरमा को करसनभाई सिर्फ साढ़े तीन रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते थे। आसपास के कम आमदनी वाले लोगों को निरमा अच्छा विकल्प लग रहा था, ऐसे में निरमा की बिक्री शुरू हो गई और यह निरमा हेमा, रेखा, जया और सुषमा… सबकी पसंद बन गया।

1969 में केवल एक व्यक्ति द्वारा शुरू की गई कंपनी में आज लगभग 18000 लोग काम करते हैं और इस कंपनी का टर्नओवर 70000 करोड़ से भी ज़्यादा का है। यह इस प्रोडक्ट और इसके पीछे लगे शख़्स का मानसिक कौशल ही तो है कि अगर कोई व्यक्ति वाशिंग पाउडर खरीदने जाता है तो पहले उसके मुँह से निरमा शब्द ही निकलता है।

करसनभाई पटेल की पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें। तो इनका जन्म 13 अप्रैल 1944 को गुजरात के मेहसाणा शहर के एक किसान परिवार में हुआ था। करसन पटेल के पिता खोड़ी दास पटेल एक बेहद साधारण इंसान थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने बेटे करसन को अच्छी शिक्षा दी।

करसनभाई पटेल ने अपनी शुरुआती शिक्षा मेहसाणा के ही एक स्थानीय स्कूल से पूरी की। इसके बाद 21 साल की उम्र में इन्होंने रसायन शास्त्र में BSc. की पढ़ाई पूरी की। वैसे तो अधिकतर गुजरातियों की तरह करसन भी नौकरी न कर के खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहते थे लेकिन घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह खुद के दम पर कोई नया काम शुरू कर सकें।

यही वजह रही कि उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्रयोगशाला में सहायक यानी लैब असिस्टेंट की नौकरी कर ली। कुछ समय तक लैब में नौकरी करने के बाद उन्हें गुजरात सरकार के खनन और भू–विज्ञान विभाग में सरकारी नौकरी मिल गई।

इसके बाद एक ऐसा तूफान आया जिसने सब कुछ बदल कर रख दिया। जिसके बाद सरकारी नौकरी वाले करसन बाबू की दिशा ही बदल गई। पहले उन्होंने बेटी की याद में निरमा बेचना शुरू किया।

फिर 1995 में करसन पटेल ने निरमा को एक अलग पहचान दी और उन्होंने अहमदाबाद में निरमा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की। इसके बाद 2003 में उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और निरमा यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना भी की।

आज करसन भाई की गिनती भारत के चंद रईस बिजनेसमैन में की जाती है और उनकी बेटी निरमा का नाम भी लोगों की जुबान पर रटा हुआ है।

PEHCHAN FARIDABAD

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