जैसा कि आप सभी को पता ही है, हिंदू धर्म के हिसाब से साल में कुछ समय ऐसा आता है, जिस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है। और अगर कोई क्रिया है तो वह कार्य सफल नहीं हो पाता। अब आप जानना चाहते होंगे कि यह समय कब और कैसे आता है। और इस समय में क्या क्या करना चाहिए। जन के लिए खबर को अंत तक पढ़िए।
इस समय को खरमास खा जाता है। इसकी शुरुवात शुरुआत गुरुवार से हो चुकी है, जिसका समापन मकर संक्रांति (14 जनवरी 2022 को रात 8.49 बजे) को होगा। इस एक माह में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं कर सकते। पं. नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार सूर्य जब धनु राशि में पहुंचते हैं तो धनु की संक्रांति लगती है।
इसी दिन से खरमास प्रारंभ हो जाता है, जो मकर संक्रांति तक चलता है। इस दौरान भगवान की पूजा का विशेष महत्व है। अनेकों मंदिरों मे धनुर्मास का उत्सव मनाया जाता है। इस महीने में दूध से बने पकवान जैसे कि खीर आदि के भोग का विशेष महत्व है। निष्काम भाव से धर्मशास्त्रों का वाचन, स्तोत्र पाठ आदि करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
पं. शरदचंद्र मिश्र ने बताया कि नवग्रहों के स्वामी सूर्य जब-जब देवताओं के गुरु बृहस्पति की राशि धनु और मीन में गोचर करते हैं, तब- तब खरमास होता है। इसमें भी कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। हालांकि खरमास में पूजा-पाठ और पुण्य कार्य जैसे दान इत्यादि धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व बताया गया है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खरमास में धार्मिक कार्य और पुण्य करने से समस्त कठिनाइयां समाप्त होती हैं और सुख- शांति की वृद्धि होती है। वर्ष में दो बार, जब सूर्य धनु और मीन राशि में आते हैं तब खरमास लगता है। सूर्य किसी भी राशि पर एक महीने रहते हैं । धनु राशि में प्रवेश के समय बृहस्पति का भी तेज कमजोर हो जाता है और गुरु के स्वभाव में उग्रता आ जाती है।
सूर्य जब भी बृहस्पति की राशि में जाता है तो वह प्राणिमात्र के लिए उत्तम नहीं रहता है। किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए त्रिबल की आवश्यकता होती है। त्रिबल अर्थात सूर्य, चंद्रमा व बृहस्पति का बल। जब तीनों ग्रह उत्तम स्थिति में रहते हैं, तभी शुभ कार्य किए जाते हैं।
इनमें से यदि कोई भी क्षीण या निस्तेज होता है, अस्त होता अथवा पीड़ित होता है तो शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। खरमास में दो ग्रहों का बल तो बना रहता है लेकिन एक ग्रह कमजोर हो जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार सूर्य अपने गुरु बृहस्पति की सेवा में संलग्न होने से तेजहीन हो जाते हैं ।
एक अन्य मान्यता के अनुसार सूर्य का जब बृहस्पति की राशि में प्रवेश होता है तो बृहस्पति प्रदूषित हो जाते हैं अर्थात सूर्य के तेज से निष्प्रभावी हो जाते हैं। इसलिए शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
केवल दो ग्रहों का ही बल होने से विवाह, वधू प्रवेश, द्विरागमन, वरच्छा, विदाई, यज्ञोपवीत, मुंडन, गृहप्रवेश, गृहारंभ, नये कार्यों का आरंभ इत्यादि वर्जित कार्य है। इसके लिए त्रिबल की आवश्यकता है।
पुंसवन, सीमन्तोयन, प्रसूति स्नान, नृत्य-वाद्य कलारंभ, शस्त्रधारण, आवेदन पत्र लेखन, श्राद्ध कर्म, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, भूमि क्रय-विक्रय, आभूषण निर्माण, सेवारंभ (नौकरी शुरू करना) पौधारोपण, शल्य चिकित्सा, मुकदमा दायर करना आदि।
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