आज कल नौकरी की होड़ के लिए जिस तरह उच्च शिक्षा की मांग बढ़ गई हैं, तो वहीं दूसरी तरफ ज्ञान होना भी एक बड़ा मुद्दा बन गया हैं। क्या हो अगर उक्त दोनों ही क्वालिटी व्यक्ति में होने के बावजूद भी अगर नौकरी न मिली हो तो उस व्यक्ति की परेशानी का अंदाजा लगाना भी आपके और हमारे परे हैं। दरअसल ऐसा ही हुआ एक ऐसे व्यक्ति के साथ जिसने ना सिर्फ साक्षात्कार को क्लियर किया बल्कि मेरिट लिस्ट में भी उसका नाम टॉप पर था बावजूद इसके उसे कोई नौकरी ना मिल सके।
जब उस व्यक्ति से नौकरी न मिलने का प्रश्न किया गया तो उसने बताया कि जहां भी वह इंटरव्यू देने गया वहां उम्मीदवार से स्टेनोग्राफी का कौशल होना जरूरी कहा गया, जो कि उसके पास था ही नहीं। वैसे तो नौकरी की आवश्यकता में आशुलिपि का उल्लेख नहीं किया गया था।
उक्त मामले को आधार बनाकर साल 1990 में फर्रुखाबाद निवासी इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वहीं साल 2000 में उत्तराखंड के उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उक्त मामला नैनीताल में एचसी को स्थानांतरित कर दिया गया था। तबसे लेकर अब जब जॉन 55 साल हो गए है, तब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिसंबर 2020 में उनके पक्ष में फैसला सुनाया।
अदालत के फैसले के मुताबिक अब उन्हें स्कूल न सिर्फ स्कूल में नियुक्त किया जाएगा, बल्कि साथ-साथ मुआवजे के रूप में 80 लाख रुपए जारी करने का आदेश भी जारी कर दिया गया है। वैसे तो उत्तराखंड सरकार ने जॉन को कुछ महीने पहले ही 73 लाख रुपए का भुगतान किया था, इसके अलावा शेष 7 लाख रुपए का भुगतान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया जाना बाकी है अब, चूंकि वे स्कूल में सबसे वरिष्ठ शिक्षक हैं, इसलिए वे शिक्षण संस्थान के कार्यवाहक प्राचार्य भी हैं।
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