पिछले दिनों कर्नाटक में हिजाब विवाद तूल पकड़ता हुआ दिखाई दे रहा हैं। इस बीच इसकी गूंज अब हरियाणा तक भी गूंजने लगीं हैं। दरअसल, सर्वजातीय सर्व खाप की महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष व राष्ट्रपति सम्मान से नवाजी जा चुकीं डा. संतोष दहिया ने हरियाणा में वर्ष 2014 में ‘म्हारा बाणा-परदा मुक्त हरियाणा’ विशेष अभियान की शुरुआत की थी। हालांकि हरियाणा की संस्कृति में घूंघट का एक विशेष महत्व रहा है।
सूबे के अधिकतर गांवों में घूंघट (परदा) प्रथा लंबे समय से बनी हुई है। मगर पिछले करीब आठ वर्षों में सजग महिलाओं के प्रयासों से यह प्रथा संकीर्णता के दायरे से बाहर आ चुकी है। महिला खाप के साथ-साथ प्रगतिशील महिलाओं के विभिन्न संगठनों ने भी इस मुहिम को प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ाते हुए गांवों में महिलाओं को घूंघट प्रथा के प्रति जागरुक बनने की शपथ तक दिलाई।
बुजुर्गों को समझाया घूंघट सरकने से सम्मान नहीं सरकता
हरियाणा में करीब 180 खाप हैं, जिनका सूबे की संस्कृति, पहनावा, रहन-सहन के तौर तरीकों और सामाजिक कार्यों में बड़ा दखल है। दहिया खाप की भी अध्यक्ष डॉ. संतोष बताती हैं कि इस मुहिम का आरंभ शुरुआती दौर में आसान नहीं था। बुजुर्गों का यह मानना था कि बहू-बेटियों के सिर से घूंघट सरकेगा तो उनके भीतर से अपने बुजुर्गों के प्रति सम्मान की भावना भी सरक जाएगी।
वह कहती हैं कि इस सोच को बदलने में बहुत समय लगा। शुरुआत में कई खाप इस बात का विरोध करती थीं, मगर विभिन्न पंचायतें व महापंचायतों के जरिये उन्हें यह समझाया गया कि यह घूंघट किस कदर हमारी बेटियों की तरक्की में बाधा बन रहा है, उनका आत्मविश्वास खो रहा है। उन्हें यह भी समझाया गया कि बुजुर्गों की इज्जत करना तो हरियाणवी बहू-बेटियों के संस्कार का हिस्सा है, जिसकी तालीम उन्हें बचपन से दी जाती है। आखिरकार बुजुर्ग समझने लगे और इस मुहिम को बल मिलता गया।
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