नागौर जिला से आए बाबूलाल राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के मेलों में पर्यटकों को राजस्थानी व्यंजन चखाने में महारत हासिल रखते हैं। कैर सांगर की सब्जी, बाजरा का रोट, दाल-बाटी, चूरमा और कुल्हड़ की चाय पीने के लिए फूड कोर्ट में इनकी स्टाल पर लोगों की कतारें लगी रहती हैं।
बाबूलाल बताते हैं कि वह जब 14 साल के थे, तो काम करने के लिए बीकानेर हल्दीराम की दुकान पर चले गए थे। वहां उन्होंंने बतौर हैल्पर काम करना शुरू किया और सात साल में ही कारीगर बन गए।
काजू कतली, गुलाबजामुन, रसगुल्ला, नमकीन भुजिया आदि बनाने में इनको चंद मिनटों का ही समय लगता था। पचास बरस के बाबूलाल नागौर जिला के गांव जाइल के रहने वाले हैं। पहले सूरजकुंड मेले में इनके बड़े भाई गोपाल जी आते थे। विगत बीस सालों से वह स्वयं सूरजकुंड आकर राजस्थानी व्यंजनों की स्टाल लगा रहे हैं।
यहां फूड कोर्ट में इनकी दुकान पर कुल्फी, हरी चटनी और मूंग की पकौड़ी, मिस्सी रोटी, गट्टे की सब्जी, कचोरी व चाय पीने के लिए लोग चाव से आते हैं। सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेले के अलावा बाबूलाल, नागपुर के ओरेंज सिटी क्राफ्ट मेला, प्रगति मैदान में अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला, बीकानेर हाऊस में 24 से 29 मार्च तक राजस्थान दिवस के उपलक्ष्य में लगने वाला मेला, दिल्ली हाट, साकेत मैट्रो स्टेशन के समीप आयोजित गार्डन ऑफ फाइव सेंसज, चंडीगढ़ कलाग्राम आदि में भी ये राजस्थान खाना खजाना की स्टाल लगाते हैं।
प्रगति मैदान में आने वाले दर्शक राजस्थान हाऊस में जाने से पहले बाबूलाल की स्टाल पर बैठना पसंद करते हैं। बाबूलाल ने कहा कि उनके पास अभी 55 कारीगर काम कर रहे हैं। उनका सीकर-जोधपुर हाईवे पर जायका नाम से रेस्टोरेंट भी चल रहा है।
अब उनकी एक ही तमन्ना है कि विदेश में कहीं कोई मेला लगता हो तो वहां वह राजस्थानी खाने की स्टाल लगाने जाएं। सूरजकुंड में राजस्थान के भोजन का स्वाद आप लेना चाहें तो बाबूलाल की सेवाएं ले सकते हैं।
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