एक स्त्री को हमेशा से एक पुरुष की जरूरत होती है की वो पुरुष उस स्त्री की रक्षा कर सके। हमेशा से यही रीत चलती आई है की स्त्री पुरुषों से हर चीज में काम होती है और ज्यादा भेदभाव तो तब देखने को मिलता है जब स्त्री और पुरुष की शारीरिक बल की बात की जाती है।
पुरुष हमेशा से बलवान रहा है स्त्री के मुताबिक। लेकिन शायद हम भूल गए है जब पुरुष भी अपने अस्त्र शस्त्र से हर जाता है तो एक ही प्राणी की याद आती है वो है स्त्री। यहां स्त्री से हमारा तात्पर्य दुर्गा मां है। कैसे दुर्गा मां ने तबाही मचा रहे महिषासुर का वध किया था।
जब सारे लोग महिषासुर के प्रतारण से हार गए थे तब दुर्गा माता ने ही कल्याण किया था। आज हम आपको महिषासुर और दुर्गा माता की कहानी बताएंगे की कैसे दुर्गा माता ने महिषासुर का वध कर नारी शक्ति का परचम लहराया।
मां दुर्गा नौ रूपों का प्रतीक है इसलिए नवरात्रि भी नौ दिनों तक मनाई जाती है। नवरात्रि का हर एक दिन एक माता को समर्पित होता है। हमने दुर्गा माता के पंडाल में दुर्गा माता की मूर्ति के साथ एक राक्षस को जरूर देखा है जिसे मां दुर्गा त्रिशूल में मार रही होती है। दरअसल वो राक्षस महिषासुर है जिसका मां दुर्गा अपने त्रिशूल से वध कर रही होती है।
महिषासुर असुर प्रजाति से था। महिषासुर के पिता का नाम रंभ था। रंभ असुरों का राजा था। देवी भागवत पुराण की कथा के अनुसार, रंभ ने अपनी तपस्या से अग्निदेव को प्रसन्न कर एक पुत्र को प्राप्त किया। महिषासुर की उत्पत्ति पुरुष और महिषी यानी भैंस के संयोग से हुआ। क्योंकि महिषासुर की उत्पत्ति मनुष्य और भैंस के योग से हुआ, इसलिए उसमें ऐसी शक्ति थी कि वह इच्छानुसार भैंस और मानव का रूप धारण कर सकता था।
भले ही महिषासुर असुरों का राजा था। परंतु वह ब्रह्मा जी का बड़ा भक्त भी था। उसने ब्रह्मा जी को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके वरदान मांगा कि कोई भी दानव और देवता उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सके। ब्रह्मा जी ने महिषासुर से कहा, जन्मे हुए सभी प्राणी का मरना तय होता है, इसलिए मृत्यु को छोड़कर जो चाहे, वर मांग लो।
महिषासुर ने फिर ऐसा वरदान मांगा की किसी भी मानव या दानव के हाथों मेरी मृत्यु न हो, लेकिन किसी स्त्री के हाथों मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करे। और ब्रह्मा जी ने महिषासुर को यह वरदान दे दिया। इसके बाद महिषासुर स्वर्ग लोक में देवताओं और धरती पर मनुष्यों को सताने लगा।
महिषासुर के आतंक से देवगण और मनुष्य सभी परेशान हो गए। परेशान होकर सभी देवगण ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे। लेकिन अजय होने के वरदान के कारण सभी उससे हार गए। लेकिन मां दुर्गा के हाथो उसका वध हुआ।
जिस पहाड़ी पर माता और महिषासुर का युद्ध हुआ था वो किक पहाड़ी पर हुआ था। वहीं पर कोंडागांव में एक मंदिर स्तिथ है। इसी पहाड़ी पर अनवरत कई दिनों तक युद्ध चला। अंत में महिषासुर प्राण बचाने भागा, मां दुर्गा पहाड़ी के ऊपर स्थित पत्थर में खड़े होकर महिषासुर को चारों और निहारने लगी। जहां एक विशाल पत्थर के ऊपर मां दुर्गा के पैर और शेर के पंजे के निशान आज भी मौजूद हैं।
माता के पदचिन्ह की आस्था से पूजा की जाती है। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध होने के चलते पहाड़ी को स्थानीय हल्बी बोली में भैंसा दौन्द या द्वंद कहते हैं। बड़े डोंगर का पहाड़ महिषासुर और मां दुर्गा का युद्ध स्थल है। कालांतर में यहां के राजाओं द्वारा रियासत काल में मां दंतेश्वरी का मंदिर बनाया गया। बताया जाता है कि यहां पहाड़ी में अंधेरी सुरंग है जिसे रानी दर गुफा कहते हैं।
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