आपने भगवान को खुश करने के लिए कई ऐसी प्रथाएं या परंपराएं देखी होगी, जो आपको हैरान कर देगी। जिसमें कई तरह की पूजा अर्चना होती है। जैसे की अभी हाल फिलहाल में एक फिल्म आई थी (kantara) जो इसको जीता जाता उदाहरण हैं। वहीं दुनिया भर में आदिवासियों की भी ऐसी कई परंपराएं हैं, जिसे देख कर शहरी लोग हिल जायेंगे।
आज हम आपको ऐसी ही एक बहुत विचित्र परंपराएं के बारे में बताने जा रहे हैं। तेलंगाना राज्य के आदिवसियों में ऐसी ही एक परंपरा 1961 से चली आ रही है। तेलंगाना की आदिवासी महिला ने 62 साल पुरानी परंपरा को जिंदा रखा हैं। उस महिला ने स्थानीय उत्सव में सुख-शांति और समृद्धि के लिए ढाई किलो से ज्यादा तिल के तेल को पीया।
1) आदिवासी कबीले की परंपरा के मुताबिक, कबीले की पैतृक बहनों में से एक को तीन साल की अवधि में वार्षिक त्योहारों के दौरान बड़ी मात्रा में घर का बना तिल का तेल पीना पड़ता है।
2) आदिलाबाद जिले के नारनूर मंडल मुख्यालय में आयोजित पांच दिवसीय वार्षिक मेला खामदेव जतारा की 62 साल पुरानी परंपरा का पालन करते हुए एक आदिवासी महिला ने सुख, शांति और समृद्धि के लिए 2.5 किलो तिल का तेल पिया।
3) वार्षिक उत्सव हिंदू कैलेंडर वर्ष के पवित्र महीने पुष्य के महीने में पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है।
4) महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के जिविथी तालुक के कोड्डेपुर गाँव के मेसराम नागुबाई, थोडासम कबीले की एक पैतृक बहन, ने बड़ी मात्रा में तिल का तेल पीकर वार्षिक उत्सव की शुरुआत की। बाद में मंदिर समिति के सदस्यों ने उनका अभिनंदन किया।
5) थोडासम कबीले के सदस्य भगवान कामदेव को अपने पारिवारिक देवता के रूप में पूजते हैं।
6) कबीले की परंपरा के मुताबिक, कबीले की पैतृक बहनों में से एक को तीन साल की अवधि में वार्षिक उत्सव के दौरान बड़ी मात्रा में घर का बना तिल का तेल पीना पड़ता है। यह परंपरा अनवरत चलती रहती है।
7) इनके मुताबिक यह परंपरा 1961 में शुरू हुई थी। तब से अब तक कुल 20 सगी बहनों ने इस परंपरा का सफलतापूर्वक पालन किया है।
8) इस बार भी यह परंपरा सफलतापूर्वक पूरी हुई है। अब मेसराम नागुबाई की बारी है, जो अगले दो वर्षों तक तिल का तेल पीकर परंपरा का पालन करेंगी।
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