स्मार्ट सिटी में पेयजल की किल्लत का रोना साल भर 12 माह तक रहता है, लेकिन गर्मी आते ही यह रोना अमन में बदल जाता है। यह गुस्सा नगर निगम में मटके फोड़ने और सड़कों को जाम करने के रूप में सामने आता है। अब 25 लाख से ज्यादा आबादी वाले इस शहर में जब नगर निगम मांग के मुताबिक पानी नहीं दे पाएगा तो ऐसा होना तय है।
पानी की स्थिति बेहतर नहीं
पहले पानी का सही प्रबंधन करना और फिर उसे घरों तक पहुंचाना नगर निगम की जिम्मेदारी थी, लेकिन फरीदाबाद मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी के गठन के बाद से, प्राधिकरण ने पानी के प्रबंधन और लोगों तक पानी पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है। इसकी जिम्मेदारी नगर निगम की है। हमारे शहर को रोजाना 450 एमएलडी (एक एमएलडी में दस लाख लीटर पानी) पानी की जरूरत होती है, जिसके मुकाबले 330 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है। 120 एमएलडी कम पानी मिल रहा है, लेकिन रिन्यूएबल प्रोजेक्ट के जरिए पानी का प्रबंधन किया जा रहा है। अगर शहरी क्षेत्र के 76 तालाब नहीं सूखे होते, बड़खल झील नहीं सूखती और सूरजकुंड जैसे प्राकृतिक स्रोत नहीं सूखते तो शहर में पानी की स्थिति बेहतर हो सकती थी।
तालाबों पर अतिक्रमण, झील को पुनर्जीवित करने की कोशिश
कहीं तालाबों पर अतिक्रमण कर लिया गया है तो कहीं डंपिंग ग्राउंड बना दिया गया है। कभी दिल्ली-एनसीआर के पर्यटकों की पसंदीदा जगह बरखल झील के सूखने से धरती भी भरनी बंद हो गई। बड़खल झील के सूखने का कारण आसपास के इलाकों में अवैध खनन है। जब भी बारिश होती तो बड़खल झील लबालब भर जाती और उसका पानी नीचे जमीन में रिस जाता। इससे भूजल स्तर ठीक रहेगा और वर्ष 2000 तक बड़खल झील के आसपास के पांच किलोमीटर क्षेत्र में भी बिना मोटर के नलों से सीधे घर में पानी पहुंचता था। सूरजकुंड को सूखने से बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। अब विधायक सीमा त्रिखा के प्रयास से बड़खल झील को एक बार फिर से पुनर्जीवित करने की तैयारी की जा रही है और साथ ही नगर निगम में शामिल 24 गांवों के तालाबों की स्थिति में सुधार की तैयारी भी शुरू कर दी गई है। वैसे तो हम सभी को व्यक्तिगत रूप से जागरूक होकर जल संचयन की दिशा में कार्य करना होगा, तभी हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुखद कल छोड़ पाएंगे।