वर्षा के पानी की निकासी में नालों की अहम भूमिका होती है जहां नाले की व्यवस्था बेहतर है। वहां शहरों की सड़कों पर कहीं भी जलभराव नहीं होता। नाले आगे एसटीपी से जुड़ते होते। ऐसे में वर्षा होने पर कुछ ही मिनट में पानी निकल जाता है। पर जहां नालों की सफाई के नाम पर भ्रष्टाचार होता है तो उस शहर में भगवान ही मालिक है। अपनी औद्योगिक नगरी के हाल भी कुछ ऐसे ही ए न्यू इंडस्ट्रियल टाउन में नाली कहीं गाद से भरे हुए हैं तो कहीं सफाई के नाम पर लीपापोती हुई है। कई स्थानों पर ऐसे नाली भी देखने को मिलते हैं। जहां पर दिनों दिनों तक कूड़ा डालने वाले संस्थान पर परिवर्तित हो गए हैं। इन्हें खता कहा जाता है।
एनआईटी में गुरुद्वारा पंचायती के पास दो-तीन के गोल चक्कर से आगे अरावली गोल्फ कोर्स की दीवारों के साथ-साथ दो नंबर की और जो नाला जाता है, उसकी स्थिति भी कुछ इसी तरह है। यहां त्रिवेणी नर्सिंग होम के सामने खाली जगह पर जो डाला जाता था, वह बढ़ते बढ़ते नाले तक पहुंच गया है। नाले में तमाम पड़े होने की वजह से जब भी वर्षा होती है तो वहां पर जलभराव हो जाता है और लोगों को इस समस्या का सामना करना पड़ता हैं।
नाले में जिस तरह से कूड़ा पड़ा हुआ था, उसे साफ है कि यहां कि निगम इंजीनियरिंग शाखा के अधिकारियों को कभी झांक कर भी नहीं देखा। अगर देखा होता तो सफाई कर्मियों को नाले साफ करने का निर्देश दे दिया होता और अब यह भी हो सकता है कि जो बजट नालों की सफाई के लिए निर्धारित हुआ था, उसे सफाई की बजाय बजट पर ही हाथ साफ कर दिया जाए।
इसी तरह से एनआईटी नंबर 5 में केएल मेहता दयानंद कॉलेज के सामने का क्षेत्र पास नंबर में पड़ता है। यहां पतंजलि स्टोर के सामने ही रेड सिग्नल के ठीक सामने सेंट जोसेफ स्कूल की ओर जाने वाली मोड़ पर जो नाला है, वह कूड़े से पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है, जब यहां पर वर्षा होती तो यहां पर जलभराव हो जाता है जिसकी वजह से इस मार्ग पर वर्षा होने से सड़कें जलमग्न हो जाती है और मानसून की वर्षा जब लगातार होती है तो फिर से शहरवासियों को उसको दंश झेलना पड़ेगा। लोग परेशान तो है परंतु नगर निगम के अधिकारियों की बला से।