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लाखों खर्च करने के बाद भी नगर निगम नहीं दिला पा रहा है Faridabad की जनता को इस समस्या से छुटकारा, यहां पढ़े पूरी ख़बर

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फरीदाबाद का नगर निगम हमेशा से ही अपने काम अनोखे अंदाज में करता है, क्योंकि लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उनके काम पूरे नहीं होते है। दरअसल प्रदेश सरकार आए साल बेशाहरा गायों की सुरक्षा और रखरखाव के लिए लाखों रुपये खर्च करती है, लेकिन आलम यह है कि नगर निगम इन गायाें को गोशालाओं तक नहीं पहुंचा रहा है।

लाखों खर्च करने के बाद भी नगर निगम नहीं दिला पा रहा है Faridabad की जनता को इस समस्या से छुटकारा, यहां पढ़े पूरी ख़बर

जिस वज़ह से बेसहारा गाय शहर की सड़कों पर, कूड़े के ढेरों मे खाना ढूंढती हुई घूमती रहती है, जैसे सड़कें ही उनकी गौशालाएं हो‌। कभी यह बेसहारा गाय ही बड़े बड़े हादसो का कारण बनती हैं। बता दें कि फिलहाल निगम के पास 2 गाड़ियां है, 15 कर्मचारी है जो इन गाय को पकड़कर गौशालाएं ले जानें के लिए है। लेकिन ये 2 गाड़ियां भी ज्यादातर खराब रहती है। जिस वज़ह से कुछ नहीं हो पाता है।

इसी के साथ बता दें कि गायों की सुरक्षा के लिए प्रदेश सरकार ने साल 2015 में गोवंश संरक्षण व गो संवर्धन विधेयक-2015 पारित किया था। जिसमें गो हत्या, तस्करी और गो मांस की बिक्री पर रोक लगाई गई है। साथ ही गायों को दूसरे राज्य मे ले जानें के लिए भी परमिट लेना होगा। इसी विधेयक के तहत ही सरकार गोशालाओं को करोड़ाें रुपये का अनुदान भी दे रही है।

लाखों खर्च करने के बाद भी नगर निगम नहीं दिला पा रहा है Faridabad की जनता को इस समस्या से छुटकारा, यहां पढ़े पूरी ख़बर

जिसमें फरीदाबाद में गोरक्षा सदन मवई को 10 लाख रुपये प्रतिमाह, श्री गोपाल गोशाला सूरजकुंड को 4 लाख रुपये प्रतिमाह और गो मानव सेवा ट्रस्ट को 3 लाख रुपये प्रतिमाह अनुदान के रूप में दिया जाता है। लेकिन इन सब का कोई फायदा होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है, क्योंकि गाय अब भी सड़कों पर घूमते हुए देखी जा सकती हैं।

इस पर आरटीआई एक्टीविस्ट अजय सैनी ने अपनी राय देते हुए कहा है कि,”नगर निगम गायों को पकड़ने का ठेका अगर गौ सेवकों को दे दे तो, बहुत जल्द शहर को आवारा गायों से मुक्ति मिल जाएगी। नगर निगम ने 2019 से लेकर 2022 तक प्रति गाड़ी केवल 4400 रुपये का डीजल फूंका गया है। वाहन खड़े-खड़े कंडम हो गए हैं, लेकिन उनका समूचित उपयोग नहीं किया गया है। ऐसे में निगम अधिकारियों की कार्यशैली का अंदाजा लगाया जा सकता है कि गायों की सुरक्षा को लेकर कितने गंभीर हैं।”

वहीं डॉ. नितिश परवाल का कहना है कि,” सड़कों पर घूमने वाली गायों की संख्या शहर में बहुत ज्यादा है। इनके आश्रय के लिए खुली हुई गोशाला पर्याप्त नहीं है। कुछ नई गोशालाएं खोली जाएंगी, ताकि इन गायों को आश्रय मिल सके। गायों को उठाने के लिए दो गाड़ियां हैं, जो ज्यादातर खराब रहती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ तकनीकी विशेषज्ञाें की भी भर्ती की जाएगी।”

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