सरस मेला 2025: ग्रामीण भारत की कला, संस्कृति और स्वाद का अनूठा उत्सव

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 सरस मेला 2025: ग्रामीण भारत की कला, संस्कृति और स्वाद का अनूठा उत्सव

फरीदाबाद, 24 जनवरी।


हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा आयोजित सरस मेला 2025 का भव्य आयोजन 24 जनवरी से 6 फरवरी तक फरीदाबाद के एसएचवीपी ग्राउंड, सेक्टर-12, टाउन पार्क के पास किया जा रहा है। इस आयोजन की जानकारी देते हुए जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के सीईओ सतबीर मान ने बताया कि यह मेला डीसी विक्रम सिंह के मार्गदर्शन में ग्रामीण भारत की कला, संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रदर्शन होगा। मेले में हरियाणा सहित देशभर के स्वयं सहायता समूह (SHGs) अपनी हस्तशिल्प वस्तुएं, हैंडलूम उत्पाद और पारंपरिक व्यंजन प्रदर्शित और बिक्री के लिए प्रस्तुत करेंगे।

सरस मेला 2025: ग्रामीण भारत की कला, संस्कृति और स्वाद का अनूठा उत्सव

ग्रामीण सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम


सतबीर मान ने बताया कि मेले का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के स्वयं सहायता समूहों को एक व्यापक मंच प्रदान करना है, जहां वे अपने उत्पादों को प्रदर्शित कर एक बड़े बाजार तक पहुंच बना सकें। यह प्रयास ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

सरस मेला 2025: ग्रामीण भारत की कला, संस्कृति और स्वाद का अनूठा उत्सव

मेले की प्रमुख गतिविधियां और आकर्षण


सरस मेला 2025 में विभिन्न राज्यों के एसएचजी सदस्यों द्वारा तैयार किए गए हस्तशिल्प, हैंडलूम, जैविक उत्पाद, सजावटी वस्तुएं और दैनिक उपयोग की सामग्री प्रदर्शन और बिक्री के लिए उपलब्ध होंगी। ये उत्पाद न केवल ग्रामीण भारत की रचनात्मकता को दर्शाएंगे बल्कि महिला उद्यमिता को भी बढ़ावा देंगे।

मुख्य आकर्षण:

  1. ग्रामीण हस्तशिल्प और हैंडलूम उत्पाद: देशभर के बेहतरीन कारीगरों द्वारा तैयार की गई उत्कृष्ट वस्तुएं।
  2. पारंपरिक व्यंजनों के स्टॉल: हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, बिहार समेत विभिन्न राज्यों के पारंपरिक और स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद।
  3. सांस्कृतिक कार्यक्रम: प्रतिदिन लोक नृत्य, संगीत और अन्य कला रूपों का रंगारंग प्रदर्शन।
  4. महिला उद्यमिता की झलक: महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा निर्मित उत्पादों की प्रदर्शनी और बिक्री, जो महिला सशक्तिकरण का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है।

विशेष:

आम जनता के लिए मेले में प्रवेश पूर्णतः निःशुल्क है, जिससे हर वर्ग के लोग इसका आनंद उठा सकते हैं।

यह मेला न केवल ग्रामीण भारत की कला, संस्कृति और स्वाद का उत्सव है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक ठोस प्रयास भी है।

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