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बीके अस्पताल में फिर उजागर हुई लापरवाही, नाइट ड्यूटी पर नहीं पहुंची कर्मचारी, मरीजों को लौटना पड़ा खाली हाथ

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फरीदाबाद के बीके अस्पताल में स्टाफ की लापरवाही का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार की रात अस्पताल के कमरा नंबर 38 में कोई भी कर्मचारी ड्यूटी पर मौजूद नहीं था। इस दौरान एक भी मरीज की एमएलसी (मेडिको लीगल केस) दर्ज नहीं हो सकी और कई मरीजों को मजबूर होकर वापस लौटना पड़ा।

बीके अस्पताल में फिर उजागर हुई लापरवाही, नाइट ड्यूटी पर नहीं पहुंची कर्मचारी, मरीजों को लौटना पड़ा खाली हाथ

कमरा नंबर 38 में आमतौर पर आपात स्थिति या गंभीर अवस्था में पहुंचे मरीजों की एमएलसी काटी जाती है। लेकिन सोमवार रात ड्यूटी पर तैनात कोई भी कर्मचारी मौजूद नहीं था, जिससे मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।



जानकारी के अनुसार, रविवार को दोपहर 2 बजे से रात 8 बजे तक प्रिया नामक कर्मचारी की ड्यूटी निर्धारित थी, लेकिन वह अपने काम पर नहीं पहुंची। उसकी अनुपस्थिति में किसी अन्य कर्मचारी को भी ड्यूटी पर नहीं लगाया गया। यही नहीं, शनिवार को भी सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक प्रिया ड्यूटी पर नहीं आई थी।

बीके अस्पताल में फिर उजागर हुई लापरवाही, नाइट ड्यूटी पर नहीं पहुंची कर्मचारी, मरीजों को लौटना पड़ा खाली हाथ

मरीज और उनके परिजन घंटों तक कर्मचारी के आने का इंतजार करते रहे, लेकिन जब कोई नहीं आया तो वे निराश होकर वापस लौट गए। अस्पताल प्रशासन की इस लापरवाही से मरीजों को सबसे ज़्यादा परेशानी झेलनी पड़ रही है। कर्मचारियों की गैरहाजिरी की जानकारी होने के बावजूद प्रशासन की ओर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

बीके अस्पताल में फिर उजागर हुई लापरवाही, नाइट ड्यूटी पर नहीं पहुंची कर्मचारी, मरीजों को लौटना पड़ा खाली हाथ

अगली शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। उनका कहना है कि जब नाइट ड्यूटी वाले नहीं आते, तो हमें डबल काम करना पड़ता है। इससे मरीजों की सेवा भी प्रभावित होती है और स्टाफ पर अतिरिक्त दबाव बढ़ता है।

बीके अस्पताल में फिर उजागर हुई लापरवाही, नाइट ड्यूटी पर नहीं पहुंची कर्मचारी, मरीजों को लौटना पड़ा खाली हाथ

अस्पताल के अन्य कर्मचारियों और चिकित्सकों ने इस मामले की शिकायत भी दर्ज कराई, लेकिन अब तक इसका कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। लगातार बढ़ रही ऐसी घटनाओं से स्पष्ट है कि अस्पताल प्रशासन के सुधार के दावे कागज़ों तक सीमित हैं, जबकि मरीजों को इसकी कीमत अपनी परेशानियों से चुकानी पड़ रही है।

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