सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, खेल परिसरों, बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों जैसे सार्वजनिक स्थलों से लावारिस कुत्तों को हटाने का सख्त आदेश दिया है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इन जगहों पर आवारा कुत्तों की आवाजाही रोकने के लिए उचित घेराबंदी की जाए।

शीर्ष न्यायालय ने चेतावनी दी कि इस आदेश की अवहेलना को गंभीरता से लिया जाएगा और संबंधित नगरपालिका तथा प्रशासनिक अधिकारियों को इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।

जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की पीठ ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, खेल परिसरों, बस डिपो या रेलवे स्टेशन के भीतर पाए जाने वाले लावारिस कुत्तों को तुरंत हटाकर नसबंदी और टीकाकरण के बाद निर्दिष्ट आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करना स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी होगी।
पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे परिसरों में कुत्तों के काटने की घटनाएं प्रशासनिक लापरवाही का प्रतीक हैं और यह नागरिकों — खासकर बच्चों, मरीजों और खिलाड़ियों — के जीवन और सुरक्षा के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करती हैं। अदालत ने कहा कि यह स्थिति तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक बार जिन कुत्तों को सार्वजनिक स्थलों से हटाया जाए, उन्हें दोबारा वहीं नहीं छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि इससे अभियान का उद्देश्य विफल हो जाएगा।

पीठ ने स्वतः संज्ञान लेते हुए यह भी आदेश दिया कि स्थानीय निकाय तीन-तीन महीने के अंतराल पर निरीक्षण करें, ताकि ऐसे परिसरों में कुत्तों का कोई ठिकाना न बने।
इसके साथ ही न्यायालय ने सड़कों, राजमार्गों और एक्सप्रेसवे से लावारिस मवेशियों को हटाने के संबंध में राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देशों की पुष्टि की। अदालत ने कहा कि मवेशियों और अन्य जानवरों को हटाने के लिए संयुक्त अभियान चलाया जाए और उन्हें गोशालाओं या मान्यता प्राप्त आश्रय गृहों में भेजा जाए।



