फरीदाबाद में जहां हर जगह कोरोना से सम्बंधित ख़बरें मिल रही हैं, वहीँ दूसरी ओर जे.सी. बोस विश्वविद्यालय ने एक सुखद खबर से अवगत करवाया है। दरअसल, जे.सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद ने सामाजिक सरोकार के लिए अपनी प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता साझा करने की दिशा में कदम उठाया है। विश्वविद्यालय मशीन लर्निंग टेक्नोलॉजी का उपयोग कर लापता बच्चों का पता लगाने की स्पीच क्लैरिफिकेशन तकनीक विकसित करेगा।
लापता बच्चों के लिए यह कदम बहुत ही लाभदायक है। विश्वविद्यालय के कंप्यूटर इंजीनियरिग विभाग को इस शोध परियोजना के लिए स्वीकृति तथा फंड आवंटित किया है।
विश्वद्यालय के कम्प्यूटर इंजीनियरिंग विभाग से प्रो. आशुतोष दीक्षित शोध परियोजना में प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर होंगे, जबकि डॉ. प्रीति सेठी और पुनीत गर्ग इस प्रोजेक्ट में को-प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर होंगे। इस परियोजना की अवधि तीन वर्ष है। यहां के कुलपति प्रो दिनेश कुमार ने समाज से जुड़े गंभीर विषय पर विभाग द्वारा शोध परियोजना के लिए की गई पहल की सराहना की है और कहा है कि बच्चों की गुमशुदगी समाज की प्रमुख समस्याओं में से एक है।
यह महानगरीय शहरों में ज्यादा है जहां माता-पिता दोनों नौकरीपेशा हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस पहल से विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं शोधार्थियों को मशीन लर्निंग जैसी उभरती हुई तकनीक पर काम करने और समाज को समाधान प्रदान करने का अवसर मिलेगा।
राज्य सरकार के उभरते अनुसंधान विश्वविद्यालय से समाज के लिए ऐसे समाधान अपेक्षित है। प्रस्तावित साफ्टवेयर से निश्चित रूप से पुलिस अधिकारियों की क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलेगी और लापता बच्चों को खोजने के मामले में तेजी से काम होगा।
भारत में लापता बच्चों के सर्वेक्षण के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए परियोजना में प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर प्रो. आशुतोष दीक्षित ने कहा कि हर दिन 174 बच्चे, जिसमें अधिकतर 6 वर्ष की आयु से कम उम्र के होते है, विभिन्न कारणों से लापता हो जाते है। लेकिन जब ऐसे लापता बच्चे पुलिस को मिलते है तो वे एक घबराहट और डर की स्थिति में होते हैं और स्पष्ट रूप से कुछ बता पाने में सक्षम नहीं होते क्योंकि वे डर कारण हकलाने लगते हैं। विकसित
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