गांधी परिवार के बेटे और कांग्रेस के नेता संजय गांधी का जन्म 14 दिसंबर,1946 को हुआ था। हमेशा से संजय गांधी को इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता था लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बड़े बेटे राजीव गांधी को उनकी विरासत संभालने के लिए राजनीति में आना पड़ा। इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी का इमरजेंसी में भूमिका विवादास्पद रही।
एक समय हुआ करता था, जब संजय से राजनीतिक चर्चा करते समय इंदिरा राजीव को कमरे से बाहर जाने के लिए कह दिया करतीं थी। 70 के दशक में लोकप्रिय युवा नेता की छवि संजय गांधी की हुआ करती थी। संजय गांधी की प्रसिद्धि उनकी सादगी और भाषण के चलते थी।
आज से 38 साल पहले की बात है ये। दिन था 23 जून 1980 का। सुबह का वक्त। जब एक पेड़ की शाखाओं में एक हैलीकाॅप्टर फंसा हुआ था जब उस हैलीकाॅप्टर को नीचे उतारा गया तो उसमें से दो लाशें निकलीं।
जिसे वहीं लाल कंबल में लपेट कर रख दिया गया और इंतजार होने लगा देश के प्रधानमंत्री का। क्योंकि इन दो लाशों में एक शख्स प्रधानमंत्री का बेटा है।
प्रधानमंत्री आईं लेकिन प्रधानमंत्री बनकर नहीं, एक मां बनकर। कार से उतरते ही इंदिरा दौड़ने लगीं। फिर कुछ संभलीं। मगर बेटे की शकल देखने के बाद फूट फूट कर रोने लगीं। दरअसल इंदिरा को संभालने वाला कोई नहीं था।
उनकी ताकत छोटा बेटा और राजनीतिक उत्तराधिकारी संजय एक लाश बन चुका था। संजय की बीवी मेनका घर पर थी। वहीं संजय गांधी के मौत के बाद पूरा देश सकते में था। सब अपने अपने ढंग से संजय को याद कर रहे थे।
विरोधी दलों के लिए वह इमरजेंसी का खलनायक था। जिसकी पहली जिद थी जनता कार बनाना। मारूति के नाम से। और इस सपने के लिए मां इंदिरा ने बैकों की तिजोरियां खुलवा दीं। सरकार की हर मुमकिन मदद दी। कार फिर भी नहीं बनी
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