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क्या पॉल्युशन से लड़ने को तैयार हैं दिल्ली सरकार!

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  • पराली की समस्या साल दर साल गंभीर

सर्दी आने में बस अब 2 महीने का ही वक्त बचा है दिल्ली सरकार ने पॉल्युशन से लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है, दिल्ली में स्थित पूसा एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने निरीक्षण किया और देखा कि किस तरह से पराली को खाद में परिवर्तित किया जाता है।

एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट ने हर तरह की फसल से निकलने वाली पराली को खाद में परिवर्तित किया गया है। वह वक्त अब बहुत दूर नहीं जब फिर से दिल्ली एनसीआर पराली की चपेट में होगा। पराली की समस्या साल दर साल गंभीर होती जा रही है और सरकारी चेतावनियां और जुर्माने के प्रावधान जैसी कोशिशें इसपर अंकुश लगाने में नाकाम रही हैं.

क्या पॉल्युशन से लड़ने को तैयार दिल्ली सरकार!

लेकिन इसी दिशा में ARAI पूसा के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने पराली के निस्तारण को लेकर नई तकनीक विकसित की। एआरएआई द्वारा विकसित इस नई तकनीक की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने प्रस्तुति दी गई।

पॉल्युशन से लड़ने की तैयारी

सराहना करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उन्हें बधाई दी और कहा कि दिल्ली में ठंड के मौसम में पॉल्युशन के प्रमुख स्रोत धान की पराली और फसल के अन्य अवशेष हैं और ARAI वैज्ञानिक को फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने के लिए कम लागत वाली प्रभावी तकनीक विकसित करने के लिए बधाई देता हूं।

क्या पॉल्युशन से लड़ने को तैयार दिल्ली सरकार!

उन्होंने कहा कि सरकारों को फसल के अवशेष को जलाने की समस्या का समाधान करने के लिए वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है बता दें, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुरुवार ने इस तकनीक के लाइव डेमोंसट्रेशन के लिए पूसा परिसर का दौरा किया।

क्या पॉल्युशन से लड़ने को तैयार दिल्ली सरकार!

बता दें, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने एक कंपोस्ट कल्चर पूसा डी कंपोजर विकसित किया है, इस कंपोस्ट कल्चर की मदद से कंपोस्ट बनाने की प्रक्रिया तेज होती है और उच्च गुणवत्ता वाली कंपोस्ट से वृद्धा में पोषक तत्वों का सुधार होता है और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कंपोस्ट को जैविक खाद की उपमा प्रदान की गई है!

क्या पॉल्युशन से लड़ने को तैयार दिल्ली सरकार!

यह तकनीक पूसा डीकंपोजर कहीं जाती है जिसमें आसानी से उपलब्ध इनपुट के साथ मिलाया जा सकता है। फसल वाली खेतों में छिड़काव किया जाता है और 8 से 10 दिनों में फसल के डंठल के विघटन को तय करने और जलाने की आवश्यकता को रोकने के लिए खेतों में छिड़काव किया जाता है।

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