हरियाणा सरकार आए दिन खेलकूद और रोजगार जैसी प्रक्रियाओं पर बेहतर से बेहतर सुविधा देने का राग अलापने में मग्न रहती है। वही यह सुविधा देने की वास्तविक सच्चाई राग अलापने से कोसों दूर है।
जहां एक तरफ हरियाणा राज्य ने कई दिग्गज खिलाड़ियों और अभिनेताओं को देश को सौंपा है। वहीं यह राज्य खिलाड़ियों को मैदान सौंपने में भी नाकामयाब साबित हो रहा है।
पिछले कई सालों से हरियाणा सरकार ने हरियाणा राज्य के खिलाड़ियों को बेहतर और सर्वश्रेष्ठ सामग्री से लेकर मैदान उपलब्ध करवाने की बात कही थी लेकिन मनोहर सरकार के यह सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
कई सालों से हरियाणा के खिलाड़ी आशा भरी निगाहों से सरकार की ओर टकटकी लगाए इंतजार कर रहे हैं परंतु बदले में उन्हें निराशा ही हाथ लग रही है। ऐसे में सबसे दुर्भाग्य पूर्ण बात और क्या हो सकती है कि खिलाड़ियों को खेलने के लिए सामग्री तो दूर मैदान भी नसीब नहीं हो रहा।
ऐसा नहीं है कि यह हालात एकदम हुए है बल्कि जिले के खिलाडिय़ों के साथ यह परेशानी करीब कई साल से जारी है। खिलाड़ी कभी बिना संसाधनों के तो कभी किराए के संसाधनों से अभ्यास करने को मजबूर है। खुलकर व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने से उन्हें अनुशासनहीनता का डर सताता है, लेकिन खिलाडिय़ों का यह दर्द तब और बढ़ जाता है जब नेता से लेकर अधिकारी वर्ग खिलाडिय़ों के प्रोत्साहन से जुड़े जुमले छोड़ते हुए दावा करते हैं कि उन्होंने खेलों में करोड़ों रुपए देकर जिले को सुपर पावर बना दिया है। हालांकि स्थानीय खेल विभाग की ओर से खिलाडिय़ों के खेल सामान की डिमांड निरंतर भेजी जाती है, लेकिन इंतजार है कि खत्म हो ही नहीं रहा है।
गांव के सरपंच के प्रति भी हरियाणा के युवाओं में पनप रहा हैै रोष
जिले के विभिन्न खेल केन्द्रों पर प्रतिदिन करीब दो हजार खिलाड़ी अभ्यास करते हैं। पलवल के गांव असावता के बड़ी तादाद में युवा खिलाडिय़ों ने सरकार की खेल नीति को कोसते हुए गांव के सरपंच पर खेल से सबंन्धित सामग्री उपलब्ध नहीं करवाने का आरोप लगाया है। इस बात को लेकर गांव के युवाओ में सरपंच के प्रति काफी रोष व्याप्त है। युवाओं का कहना है कि उनके गांव से कई ऐसे युवा है कि जो विभिन्न खेलों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडल हासिल कर चुके है। गांव में खेल से संबन्धित सामग्री व मैदान नहीं होने से उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसकी शिकायत भी वो कई बार सरपंच से लेकर बड़े अधिकारियों से कर चुके है, लेकिन बावजूद इसके उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है।
मौजूदा समय में यह हालात है कि ज्यादातर खिलाड़ी खुद अपना सामान लाते हैं, क्योंकि प्रतिदिन की खपत विभाग से पूरी नहीं होती। खेल के समय खिलाडिय़ों को ना तो सामान मिलता और ना ही खेल मैदान। हॉकी में ज्यादातर सामान के लिए एनजीओ एवं स्कूल पर निर्भर रहना पड़ता है। फुटबॉल में भी खिलाडिय़ों को अपने स्तर पर संसाधन उपलब्ध कराने की बात की जाती है। बास्केटबाल, कुश्ती, जिमनास्टिक व वालीबॉल में भी हालात बहुत ज्यादा सुखद नहीं है।
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