71 वर्ष की उम्र में तीसरी बार एमए की परीक्षा देने वाले विधायक ने एक समय खुद को समझा था नाकाबिल

एम.ए. की परीक्षा दे रहे विधायक ने कहा मत करो बिना प्रमोट डिग्री की मांग नहीं तो वो डिग्री आपकी नहीं होगी कोरोना की डिग्री युवाओं को विधायक ईश्वर सिंह का संदेश, समय का ऐसा करो उपयोग की जो भी हो आपके पास सिर्फ आपका हो मुफ्त का ना हो

वैसे तो राजनीतिक पार्टियों में नेताओं के नाम अक्सर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के बाद ही बहुचर्चित विषय बन जाते हैं, पर कैथल जिले के गुहला चीका के विधायक जिनकी उम्र 71 वर्ष है और जिनका नाम ईश्वर सिंह है। वह इन दिनों राज्य की सियासत की वजह से नहीं बल्कि अपनी परीक्षा को लेकर चर्चित हुए हैं।

दरअसल विधायक 3 साल से एम.ए. की परीक्षा दे रहे हैं। अभी भी वह ऑनलाइन परीक्षा दे रहे हैं परंतु वह इस अनुभव के बारे में बताते हैं तो उनका प्रयास जितना प्रेरक है उतना ही रोचक है। तो चलिए जानते स्वयं उन्हीं से जानते हैं

उनके जीवन में पढ़ाई का महत्व और इस बीच आने वाले संघर्ष और उनके जीवन के कुछ रोचक तथ्य। यह बात उस समय की है जब वे पहली बार 1978 मेंं विधायक बने। फिर 1979 में भजन लाल सरकार में शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन का पद मिला। कुछ ही दिनों में उन्होंने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि तब वे महज 10वीं पास थे।

दूसरी मीटिंग में नहीं कर पाए थे उपस्थित गणों का सामना

मैं पिहोवा से 5 कोस दूर स्कूल पैदल ही जाता था। उस समय दसवीं के बाद मैंने 1968 में जेबीटी कर ली। फिर राजनीति में आ गया और 1979 में स्व. भजन लाल मुख्यमंत्री थे और उन्होंने मुझे शिक्षा बोर्ड का चेयरमैन बना दिया। तब बोर्ड भिवानी में नहीं चंडीगढ़ में होता था। मैंने चेयरमैन पद पर तीन महीने मुश्किल से निकाले।

पहली मीटिंग तो जैसे-तैसे निकाली। फिर जब दूसरी मीटिंग आई तो मैं सभी को फेस नहीं कर पाया, क्योंकि मेरे सामने बोर्ड के डायरेक्टर और मेंबर आदि सभी ज्यादा पढ़े-लिखे थे। मुझे लगा कि मैं इस पद के लिए डिजर्व नहीं करता, क्योंकि मुझे चेयरमैन मेरी योग्यता के कारण नहीं बल्कि इसलिए बनाया गया है कि मैं एक एमएलए हूं।

रोज यही सोचता था कैसे बनाऊं खुद को अपने पद के योग्य

मुझे यह अच्छी नहीं लगी कि मैं केवल दसवीं पास होते हुए दसवीं-बारहवीं के छात्रों और पूरे प्रदेश की शिक्षा को लेकर प्लानिंग करूं। इसलिए मैंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। मैं रोज सोचता था कि कैसे खुद को योग्य बनाऊं। फिर

जब 1982 में मेरा विधायक का समय पूरा हुआ तो मैंने 33 वर्ष की उम्र में 1983 में 11वीं की पढ़ाई प्रैप से शुरू की कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से। फिर 37 वर्ष की उम्र में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। बीए के बाद 39 वर्ष की उम्र में एमए की हिस्ट्री से। जब मैं पेपर दे रहा था तो उस समय के वीसी मेरे पास आए और बोले कि क्या कर रहे हो आप तो मैंने उनको अपनी पूरी कहानी बताई और कहा कि मुझे अपना अधूरापन पूरा करना है।

एक पल ऐसा भी आया जब मुझे लगा अगर मैं योग्य नहीं होता तो कोई मुझे गेटकीपर भी नहीं रखता

उन्होंने कहा कि आपको तो एलएलबी करनी चाहिए। फिर मैंने लॉ करने की ठान ली और तीन साल उसमें लगाए। 42 की उम्र में लॉ करने के बाद मैंने 6 महीने कुरुक्षेत्र में वकालत भी की। मैं अब भी बार का मेंबर हूं। इसी दौरान मैं राज्यसभा से एमपी बन गया।

जब मैं पहले ही दिन राज्यसभा में गया तो पहली सीढ़ी पर पैर रखते ही मेरे सामने सारा सीन आ गया। मैंने खुद में सोचा कि अगर यह सब नहीं करता तो आज मुझे कोई यहां पर गेटकीपर भी नहीं लगाता। मेरे एमपी बनने में मेरी एजुकेशन का बड़ा हाथ है। इसके बाद नेशनल कमीशन ऑफ शेड्यूल कास्ट में सदस्य बन गया। इसमें तीन साल काफी काम किया।

लॉकडाउन के खाली समय को सही प्रयोग करने के लिए सोचा तीसरी बारे में एम.ए. कर लूं

जब मैं 2015 में कमीशन में था तो मेरे पास दो जज दोस्त आए। उन्होंने कहा कि हमने एलएलएम पास कर ली है। फिर मैंने खुद से प्रश्न किया कि क्या इस समय मैं एलएलएम कर सकता हूं। मैंने फिर 67 साल की उम्र में एलएलएम भी पास की।

इसके बाद मैं फिर से सक्रिय राजनीति में आ गया और 2019 में चुनाव जीतकर विधायक बन गया। अब कोरोना के कारण जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मैंने सोचा कि इस खाली समय का सही प्रयोग किया जाए। इसलिए मैंने तीसरी एमए करने की सोची। इसलिए मैंने एमए पॉलिटिकल साइंस के लिए आवेदन कर दिया। दूसरी एमए मैंने पब्लिक एड से कर रखी है।

बिना एग्जाम दिए वाली डिग्री आप की नहीं होगी कोरोना की डिग्री

अभी मैं ऑनलाइन एग्जाम दे रहा हूं। काफी बच्चे मांग कर रहे थे कि एग्जाम नहीं होने चाहिए और ऐसे ही डिग्री दी जाए। ऐसे युवाओं को मैं कहना चाहता हूं कि जो भी आपके पास हो वो आपकी मेहनत का होना चाहिए, मुफ्त का नहीं। बिना एग्जाम दिए डिग्री मिलती तो वो आपकी नहीं बल्कि कोरोना की डिग्री कही जाती। मैंने ये डिग्री कोई नौकरी के लिए नहीं की बल्कि मैं बताना चाहता हूं कि कोई भी आदमी किसी भी स्थिति में पढ़ सकता है, बस मन में ठान लेने की जरूरत है।

सबसे बड़ी चुनौती राजनीति और पढ़ाई में समन्वय बनाकर रखना

जब मैंने लॉ की तो उस समय कॉलेज में बच्चे सीटियां मारते थे और मेरा उनसे कोई मेल नहीं होता था। मैं क्लास के बाद अपने टीचरों से नोट्स आदि लेकर जाता था। मेरे लिए सबसे बड़ी दिक्कत राजनीति और पढ़ाई में समन्वय बनाकर रखना था। दिन में पब्लिक से मिलता हूं और अपने काम देखता हूं, फिर रात को पढ़ाई करता हूं। सोने के लिए मुझे 4 घंटे ही चाहिए होते हैं।’

deepika gaur

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