फरीदाबाद जिसे विकसित शहर के रूप में गिना जाता है लेकिन अभी भी शहर में पर्वावरण संरक्षण को लेकर बहुत कुछ करना बाकी है। कथित रूप से कहा जाये तो पर्यावरण सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी भी उतनी है जितनी सरकार की है , चाहे वो किसी भी रूप में निभाई जाये। इसी कड़ी में मानवाधिकार आयोग पर्यावरण संरक्षण में फरीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन भी अपनी भूमिका अदा कर रहा है ।
फरीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (एफआइए) द्वारा एक अभियान प्लास्टिक हटाओ पर्यावरण बचाओ की शुरूआत की। इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रधान बीआर भाटिया ने दस हजार कपड़े के थैले बनवाकर शहर में वितरित किये।
FIA के प्रधान बीआर भाटिया ने इस बारे में कहा की पॉलीथिन के उपयोग को रोकना जरुरी हो गया है पॉलोथिन को हटाकर उसके स्थान पर कपड़े से बने हुए थेलो को उपयोग में लाना चाहिए क्योंकि फरीदाबाद में प्रदूषण की दर काफी अधिक है यदि शहर को साफ़ सुथरा बंनाना है तो
पॉलथिन के इस्तेमाल को रोकना होगा ताकि फरीदाबाद शहर को प्रदूषण मुक्त किया जा सके।
आगे बताते हुए बीआर भाटिया ने कहा की FIA द्वारा पर्यावरण संरक्षण अभियान की शुरुआत की गई जिसमे फरीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन की तरफ से पोलोथिन की जगह कपडे से बने थेलो का वितरण कर लोगो को पर्यावरण संरक्षण का पैगाम दिया।
साथ बीआर भाटिया ने कहा कि एफआइए ने यह एक बेहतर अभियान शुरू किया है। इस अभियान से समाज की अन्य संस्थाओं को भी प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने माना कि मौजूदा परिस्थितियों में पर्यावरण संरक्षण समाज के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है , वही बीआर भाटिया द्वारा दस हजार कपड़े के थैले बनवाकर वितरित करने के लिए जस्टिस मित्तल ने आभार जताया।
पोलोथिन उपयोग पर सरकार ने सख्त नियम लागु करने के बाद भी शहर में पॉलीथिन का उपयोग धडल्ले से किया जा रहा है क्षेत्र की मिठाई, खिलौना, सब्जी, किराना, रेडीमेड, जूते, कपड़े व फैंसी की दुकानों पर प्लास्टिक कैरी बैग का उपयोग जा रहा है। कस्बे में मौहल्लों व चौराहा पर पॉलीथिन कैरी बैग की गंदगी अधिक मात्रा में दिखाई देती है।
कचरों के ढेर पर पड़ी पॉलीथिन को पशु खाते है। इस तरह पॉलीथिन को खाने से प्रतिदिन आवारा पशु अकाल मौत मारे जा रहे है। इसके सेवन से पशुओं में भी कई तरह की बीमारियां भी फैलती जा रहीं है। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं करता है।
जानकारी के अनुसार पॉलीथिन कैरी बैग का उपयोग करते पाए जाने पर राज्य सरकार के आदेशानुसार एक लाख रुपए तक का जुर्माना या पांच वर्ष की कैद का प्रावधान है। बढ़ते पॉलीथिन के उपयोग से मुखप्राणी काल के ग्रास हो रहे है। वहीं दूसरी ओर पर्यावरण प्रदूषण भी चिंताजनक विषय है।
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