इस समय दुनिया कोरोना से लड़ रही है लेकिन दो ऐसे देश भी हैं जो इस समय एक दूसरे से लड़ रहे हैं। ये दो हैं आर्मेनिया और अजरबैजान। गत दिनों इनके युद्ध विराम की घोषणा के बावजूद हुए संघर्ष में सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। इसमें सैनिक भी शामिल हैं। दरअसल आर्मेनिया और अजरबैजान के मध्य नागोनरे-करबाख को लेकर भौगोलिक विवाद सोवियत गणराज्य के समय से ही विद्यमान है, जो एक बार फिर से चर्चा में है।
भारत समेत दुनिया में कोविड संकट तहलका मचा रहा है, इसी संकट के समय में अनेक हिस्सों में सीमा विवाद, जातीय संघर्ष एवं हिंसा की घटनाएं इस जैविक संकट के काल में भी व्यापक रूप से प्रभावी हैं।
आर्मेनिया में इसे बहुल हैं और अजरबैजान में इस्लाम ऐसे में यह भी डर सता रहा है कि कहीं यह संघर्ष जातियों में न बट जाये। विश्व पटल पर विभिन्न राष्ट्रों के मध्य भौगोलिक विवादों को सीमा विवादों के तौर पर देखा जा सकता है। बात अगर भारत की करें कि यह किसका साथ देगा तो आपको बता दें, आर्मीनिया के लोग अंग्रेज़ों के ज़माने से काफ़ी पहले से ही व्यापार और रोज़गार के सिलसिले में भारत आते रहे थे, मुग़ल बादशाह अकबर ने आर्मीनियाई लोगों को आगरा में बसाया था।
जब भी दुनिया में किसी भी कोने में कोई विवाद होता है सभी की नज़र भारत और अमेरिका के ऊपर होती है। आपको बता दें, आर्मीनिया के लोग सूरत, चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई और बंगाल के कई शहरों में फैले। आज भी कोलकाता में बहुत सारे आर्मीनियाई लोग रहते हैं। कोलकाता, चेन्नई के अलावा कुछ और भी शहरों में अब भी आर्मीनियाई चर्चों में प्रार्थनाएँ होती हैं।
राजनैतिक और सुरक्षा से जुड़े विशेषज्ञ की बातें मानें तो चाहे आर्मीनिया हो या अज़रबैजान – दोनों भारत के क़रीब रहे हैं। आपको यह बात भी जानकर हैरानी होगी कि वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट, 2020 के अनुसार पूरी दुनिया में सीमा विवाद, आंतरिक संघर्षो एवं हिंसा के कारण 4.13 करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।
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