केंद्र सरकार द्वारा लाया गया किसानों के हित के नाम पर कृषि अध्यादेश अब उन्हीं के गले की फांस बनता दिखाई दे रहा है। कृषि अध्यादेश के बाद जहां एक तरफ देश भर में किसानों का आंदोलन चरम सीमा पर है।
वहीं दूसरी तरफ विपक्षी पार्टी द्वारा भी किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनका हमदर्द बनने का राग अलाप के हुए इस मुद्दे को ज्यादा से ज्यादा भुनाया जा रहा है। कृषि अध्यादेश ने किसानों को इस कदर कष्ट पहुंचाया है
कि अब किसान इस कानून को वापस लेने के लिए अडिग हो गए हैं कि वह विरोध प्रदर्शन से लेकर आंदोलन और अब चक्का जाम पर उतारू हो चुके हैं।
वही अब दूसरी तरफ हरियाणा के कुरुक्षेत्र की कंबोज धर्मशाला में भारतीय किसान यूनियन के देश भर से आठ राज्यों के 24 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने कृषि कानूनों के खिलाफ आगामी रणनीति बनाते हुए 3 नवंबर को देश मे चक्का जाम का फैसला लिया है।
यह कहीं ना कहीं किसानों द्वारा शुरू की गई मुहिम केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों के लिए भी आफत बनती हुई दिखाई दे रही है। इसलिए जिस दिन को किसानों ने चुना है
यानी 3 नवंबर को उसी दिन देश के 54 विधानसभा सीटों में उपचुनाव के लिए मतदान होने वाले हैं। ऐसे में यदि चक्का जाम जैसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो कहीं ना कहीं किसानों का आंदोलन विधानसभा सीट के लिए बड़ी विपदा खड़ी कर सकता है।
मीडिया से बातचीत करते हुए किसान आंदोलन के संयोजक वीएम सिंह ने बैठक के दौरान कहा कि उन्होंने आज कुरुक्षेत्र में एक बैठक बुलाई थी जिसमें सभी के विचार विमर्श से यह तय किया गया है कि 3 नवंबर को सैकड़ों किसानों द्वारा चक्का जाम किया जाएगा।
वहीं भारतीय किसान यूनियन नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने बताया कि 3 नवंबर को सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक देशभर में हाईवे जाम रखे जाएंगे।
उन्होंने बताया कि आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए कल पंजाब में बैठक बुलाई गई है, जिसमें तय किया जाएगा की 3 नंबर के बाद क्या रणनीति बनानी है।
3 नवंबर को देश की 54 विधानसभाओं पर उपचुनाव के चलते मतदान होना है, इनमें हरियाणा की बरोदा विधानसभा भी शामिल है। ऐसे में किसानों को यह चक्काजाम सरकार के लिए चुनौती पूर्ण साबित हो सकता है।