कहा जाता था की दिपावली अपने साथ बहुत सारी खुशिया लेकर आती है लेकिन इस बार की दिवाली हर बार की दिवाली से अलग है महामारी का दौर आया और लोगो की जिंदगी की रफ़्तार पर विराम लग गया,,,
आमदनी ना के बराबर होने लगी तो लोगो को चिंता सताने लगी की अब कैसे खर्चे की भरपाई की जाएगी कैसे इस त्यौहार पर पिंकी के लिए कपडे और बंटी (प्रतीकात्मक नाम) के लिए खिलोने कैसे आएंगे।
वैसे तो दीपावाली खुशियाँ लेकर आती है लोग इस पर्व को बड़े धूम धाम से मानते है और अपनों के साथ भी खुशियाँ बांटते है। लेकिन इस महामारी के कारण लोगो के व्यापर असर पढ़ा जितना असर और दुकानों पर पडा उतनी ही हानि कुम्हार वर्ग को भी हुई है
सेक्टर ३ की पुलिया के पास अपनी छोटी सी दुकान में उम्मीद के कई दीये लेकर विद्या अम्म्मा बैठी है और सुबह से शाम तक इस आस में रहती है कि कोई तो आये और उनके दीये खरीदे।
विद्या कहती है की त्यौहार आस का दूसरा नाम है जो वो रोज सभी से लगाती है की आप अपनी दिवाली के साथ मेरी भी दिवाली हैप्पी बनाएंगे आपको भी दीयो की जरुरत तो होगी ना और मुझे भी इन्तजार है आपके आने का।
लॉकडाउन के कारण पहले ही कमर टूट गई है अब रोज बस 100 रूपये की विक्री पर ही सिमट कर रह जाती है इतने में मैं कैसे अपना घर चलाऊ और कैसे त्यौहार मनाऊ। लोग बेशक बाहर बाजारी करते लेकिन बहुत कम लोग दीये खरीदते है ।
साथ विद्या कहती है कि हमारे दीये आपके घर को रौशन करते है और आपका साथ हमारे घर को खुशियों से भर देता है तो इस बार भी हमे अपना प्यार दीजिये ताकि हम भी दीवाली मना सके