राम और रामायण आदि काल से लोगों की आस्था का केन्द्र रहे हैं। रामायण की माने तो अधर्मी रावण को मार कर प्रभु श्री राम ने धर्म की स्थापना की थी। वैसे कुछ लोगों का मानना है कि प्रभु श्री राम ने धरती पर जन्म लिय भी था। क्या रावण के सच मे दस सिर और बीस हाथ थे। क्या हनुमान जी अपना रूप मनचाहा बड़ा सकते थे।
ऐसे कई सवाल है जो समय-समय पर लोगों के जेहन मे आते हैं। उसमे सबसे बड़ा सवाल है राम सेतु का जिसे श्री राम ने बना कर वानर सेना के साथ रावण की नगरी लंका पर हमला बोला था। आज हम आप को रामायण से जुड़े कुछ ऐसे तथ्यों से अवगत कराने जा रहे हैं जिसके बाद आप कह सकेंगे कि ये सब सत्य है। रामायण मे जो कुछ भी लिखा है वह शतप्रतशित सत्य है।
दरअसल रामायण और प्रभु श्री राम के होने प्रमाण राम सेतु है। समुद्र के ऊपर श्रीलंका तक बने इस सेतु के बारे में रामायण में लिखा है। इसकी खोज भी की जा चुकी है। ये सेतु ऐसे पत्थरों से बना है जो पानी मे तैरते हैं। भगवान राम ने अपने सहयोगियों की मदद से जिस सेतु का निर्माण किया लंका पहुँचने के लिए वो अटल रहा।
वो जिस पत्थर से बना था वो पत्थर पानी में डूबे नहीं बल्कि तैरते रहे, जिसकी वजह से भगवान् राम की सेना ने लंका पर विजय प्राप्त करके माता सीता को वापस अयोध्या ले आए। हम आपको बताएँगे कि आखिर क्यों वो पत्थर नहीं डूबे।
रामसेतु जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘एडेम्स ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वह पत्थर पानी में फेंकने के बाद समुद्र में नहीं डूबे. बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहे.
ऐसा क्या कारण था कि यह पत्थर पानी में नहीं डूबे? कुछ लोग इसे धार्मिक महत्व देते हुए ईश्वर का चमत्कार मानते हैं लेकिन साइंस इसके पीछे क्या तर्क देते है यह बिल्कुल विपरीत है।
विज्ञान का मानना है कि रामसेतु पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ था वे कुछ खास प्रकार के पत्थर हैं
जिन्हें ‘प्यूमाइस स्टोन’ कहा जाता है। यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैं। जब लावा की गर्मी वातावरण की कम गर्म हवा या फिर पानी से मिलती है तो वे खुद को कुछ कणों में बदल देती है।
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