वाहनों के आवागमन के लिए योजना को लगे पंख, वहीं सांस की समस्या को बढ़ावा देने के लिए पेड़ों की कटाई शुरू

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अगर आपके समक्ष दो पहलू रखे जाएं जिसमें आपको चलने के लिए रोड़ और दूसरे में आपकी सांसे छीन ली जाए तो आप किसको पहले प्राथमिकता देंगे। जीवन जीना है तो सांस लेना तो जरूरी होगा। इसके लिए जरूरी है पेड़ों का होना,

क्योंकि पेड़ों से मिलने वाली ऑक्सीजन ही व्यक्ति के जीने का सहारा होती है पर हमारे नेताओं की करनी आमजन को भुगतनी पड़ सकती हैं। इसका कारण यह है कि अब डीएनडी नोएडा से फरीदाबाद के सेक्टर-37 बाईपास रोड को 12 लेन बनाने की महत्वाकांक्षी योजना को पंख लगने लगे हैं।

वाहनों के आवागमन के लिए योजना को लगे पंख, वहीं सांस की समस्या को बढ़ावा देने के लिए पेड़ों की कटाई शुरू

एनएचएआई ने मिट्टी के परीक्षण का काम शुरू करवा दिया है। रोड पर जगह-जगह मिट्टी का परीक्षण चल रहा है। वहीं, सेक्टर-62-65 के पास पेड़ों की कटाई भी शुरू कर दी गई है।

एक तरफ जहां सरकार पौधारोपण जैसे कार्यक्रमों में हमारी सरकार सैकड़ों पौधे लगाकर फोटो सेशन करवा कर आमजन तक अपना संदेश पहुंचाती है। जिसमें वह बताती है कि पेड़ पौधे लगाना हमारे जीवन के लिए कितना अनिवार्य है।

वहीं दूसरी तरफ अपने ही अभियानों को अपने ही योजना के तहत पलीता लगाने में फरीदाबाद की प्रशासन कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। इस परियोजना को पंख लगाने के लिए पेड़ों की कटाई का कार्य भी शुरू कर दिया गया है यानी कि जहां एक तरफ प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है।

वहीं दूसरी तरफ पेड़ों की कटाई भी जारी है तो आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि किस तरह आप एनसीआर की हवाओं में या फिर यूं कहें जहरीली हवाओं में किस तरह सुरक्षित और स्वस्थ महसूस कर सकेंगे।

वाहनों के आवागमन के लिए योजना को लगे पंख, वहीं सांस की समस्या को बढ़ावा देने के लिए पेड़ों की कटाई शुरू

बात करें प्रदूषण स्तर की एनसीआर की हवाओं को जहरीले हवाओं में टॉप नंबर मिल चुका है। बावजूद यहां मिट्टी परीक्षण का कार्य भी प्रगति पर है ऐसे में जहां एक तरफ सामान्य हवा में आमजन का सांस लेना मुहाल हो गया है। लोग नाक बंद कर चलने के लिए मजबूर हो गए हैं,

वहीं दूसरी तरफ इस तरह के कार्य को प्रगति की ओर ले जाने के लिए प्रदूषण स्तर को बढ़ाने में यह परियोजना चार चांद लगाने में कामयाब होगी। अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हर व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से लड़ना पड़ेगा और आए दिन डॉक्टरों के दरवाजे खटखटाने पड़ेंगे।