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सरकार ,कृषि विधयेक कानून ,किसान व आंदोलन,और होती राजनीति ना जाने कौनसे गुल खिलाएगी ?

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लगातार 11 दिन से हरियाणा के सिंघु बॉर्डर की दहलीज़ पर बैठकर किसान एक ही बात सोच रहा है की क्या जिस लड़ाई को वो लड़ रहा है उसमे सफल हो पायेगा। जब किसानो ने आंदोलन शूरु किया तो उनकी पहली बात यह थी की इस आंदोजन को अनुशासिता और शांतिपूर्ण ढंग से किया जायेगा।

किसानो से वैसे किया कहा हुआ वादा भी निभाया है यह आंदोलन शांति पूर्ण ढंग इस लिए नही किया जा रहा की किसान सरकार से डरे हुए है बल्कि इन सभी हलधरो का मानना है की जिस दिन आंदोलन में विद्रोह के सुर गूंजने लगे उस दिन यह आंदोलन ख़तम हो जायेगा था, अन्यथा सभी को कानून के दायरे में रहे कर अपनी मांगो को रखकर अपनी बात सरकार से मनवानी है ।

सरकार ,कृषि विधयेक कानून ,किसान व आंदोलन,और होती राजनीति ना जाने कौनसे गुल खिलाएगी ?


कृषि सुधार के नाम पर सरकार ने जो तीन कानून बनाए उसको रद्द कराने को लेकर किसान लगातार आंदोलनरत है किसानो को इस समय हर वर्ग ,हर जाति ,प्रत्येक समुदाय का साथ मिल रहा है यह बात कहना गलत नहीं होगा की प्रत्येक वर्ग संवेदनाशीलता का परिचायक की नजीर पेश की है।

लेकिन जिस तरीके से इस मुद्दे पर राजनीति का माहौल गरमाया हुआ है उससे लगता है की सरकार विपक्ष के लिए थाली में परोस कर मुद्दे दे रही है लेकिन सरकार की बात किसान नहीं मान रहे है वही सरकार भी किसान की किसी बात को मानना नहीं चाहती है ।

सरकार ,कृषि विधयेक कानून ,किसान व आंदोलन,और होती राजनीति ना जाने कौनसे गुल खिलाएगी ?

जिस तरीके से आंदोलन पर राजनीति के बादल छाए हुए है यह अच्छे संकेत नहीं है। हालाँकि हर क़ानून पर सही – गलत को परे रखते हुये खुलकर बहस करनी चाहिए ताकि कोई निष्कर्ष निकल सके। अगर बात सरकार की जाये तो क्यों नहीं कानून बनाने से पहले इन किसानो से बात की गई आखिर यह कानून किसानो के हित के लिए ही तो है ।

हालाँकि कृषि कानून का हवाला देते हुए किसानो से सरकार ने बात करनी तो शुरू की तो है लेकिन इस मुद्दे बिना वजह खींचा जा रहा है जो अच्छे संकेत नहीं दे रहा है यह कहना गलत नहीं हो सकता की जिस तरीके के हालत चल रहे है उससे लगता है देरी करना शायद सरकार की रणनीति का हिस्सा हो सकता है

सरकार ,कृषि विधयेक कानून ,किसान व आंदोलन,और होती राजनीति ना जाने कौनसे गुल खिलाएगी ?

इस समय जो विवाद की स्तिथि को चल रही उसके कारण किसानो ने भारत बंद की घोषणा करदी है अब देखना होगा की कल भारत ब्नद को लेकर सरकार ने की रणनीति तैयार की है यह आंदोलन धीरे-धीरे उग्र होता जा रहा है। मौजदा सरकार ने जो इतना समय लगया उससे विपक्षी दलों द्वारा अपनी रोटी भी सकी जा रही है लेकिन सरकार का डर इस समय यह है की किसान की चिंता तक सीमित यह आंदोलन राजनीति पर भारी न हो जाये ।

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