नई कृषि बिल के खिलाफ जब से किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ अपना रोष प्रकट किया है। तब से अन्य दलों ने व संगठनों ने किसानों का हमदर्द बन कंधे से कंधा मिलाकर चलने का दिखावा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। मगर बावजूद इसके जितना रोष किसानों में केंद्र सरकार के खिलाफ है।वही अन्य दलों के प्रति भी किसानों के मन में ज्यादा सहानुभूति नहीं जागी है।
यही कारण है कि अब हरियाणा पंजाब के युवा किसान एक नए ही तरीके से विधानसभा व लोकसभा चुनाव में किसानों से तालुकात रखती हुई एक नई पार्टी का उद्घाटन करना चाहती है।
किसान आंदोलन के दौर में भारत बन्द के दौरान मोहाली के एयरपोर्ट चौक से लेकर कुंडली बॉर्डर तक डट कर खड़े रहे युवाओं ने अपने विचारों को भयमुक्त और सशक्त होकर बुजुर्गों के सामने प्रस्तुत किया।
वैसे तो आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान संगठन के अध्यक्ष किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं है, लेकिन नई पीढ़ी अब एक जुदा और अलग राह पर चलने का मन बना रही है।
उधर, युवा किसानों ने बात करते हुए स्पष्ट कह दिया है कि अब वह केंद्र की वर्तमान सरकार हो या भविष्य की सरकार के खिलाफ लड़कर ही अपना हक और अधिकार लेंगे और अपनी ही एक अलग पार्टी बना कर किसान नेताओं को जिता कर संसद व विधानसभा में भेजेंगे,
ताकि राजनीति की बात काम और हकीकत में सदन में वास्तविकता की बातें दोहराई जाए। किसान साफ-साफ कह चुके हैं कि इस आंदोलन में सियासी देख रहे राजनीतिक दलों को ज्यादा लाभ नहीं मिलने वाला।
पंजाब के युवा किसान गुरमीत सिंह व गुरमुख कहते हैं कि किसानों की परेशानियां सालों से चलती आ रही है और अभी तक उनका कोई हल नहीं निकल पाया है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने कृषि बिल के माध्यम से जिस तरह किसानों पर सीधा सीधा हमला बोला है।
ऐसे तो कांग्रेस भी कम नहीं है कांग्रेस ने 10 साल सत्ता में रहने के बावजूद स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया। कर्मवीर गिल और सोहन सिंह ने बताया कि किसानों को गंभीरता से अपने भविष्य के बारे में सोचना होगा और लड़ना भी सीखना होगा।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक लोग उनका इस्तेमाल न कर सकें, इसलिए कृषि प्रधान देश में किसानों की एक अलग पार्टी होना जरूरी है। जिससे कि संसद व विधानसभा में किसानों की आवाज गूंज सके।
हरियाणा भाकियू के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी व प्रेस प्रवक्ता राकेश बैंस ने कहा कि पहली लड़ाई नए कानूनों को रद्द कराने व अपनी जमीन को बचाने की है। उसके बाद भविष्य की लड़ाई लड़ने की रणनीति तैयार करेंगे। युवा किसानों की अपनी अलग सोच है, वे पढ़े-लिखे होने के साथ ही राजनीति को भलीभांति समझते हैं।