कृषि कानून में एमएसपी शब्द ढूंढने के लिए दीपेंद्र हुड्डा ने दी दुष्यन्त को खुली चुनौती

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कृषि कानूनों के खिलाफ जहां किसानों का आंदोलन तूल पकड़ा हुआ है। वहीं विपक्षी दल के नेताओं द्वारा ताना कसने का दौर बरकरार है। दरअसल, गुरुवार को हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला द्वारा एक बयान दिया गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि एमएसपी रद्द किया गया तो वह पहले ऐसे व्यक्ति होंगे जो इस्तीफा देंगे।

वही इस बयान पर नकेल कसते हुए और किसानों को गुमराह करने का हवाला देते हुए कांग्रेस के राज्यसभा सांसद व कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने सवाल करते हुए आरोप लगाया कि जनता जन नायक पार्टी यानी जेजेपी नेता व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला सबसे पहले तो यह बताएं किकृषि कानूनों के कौन से पैराग्राफ की कौन सी लाइन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लिखा है।

कृषि कानून में एमएसपी शब्द ढूंढने के लिए दीपेंद्र हुड्डा ने दी दुष्यन्त को खुली चुनौती

दरअसल, हिसार में दीपेंद्र हुड्डा संवाददाताओं से वार्तालाप कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि जहां पहले जेजेपी नेताओं ने पहले केवल किसान मतदाताओं से विश्वासघात किया था। अब वही उन्हें गुमराह करने में भी उक्त पार्टी नेता कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वही हुड्डा ने अध्यादेश की बात करते हुए कहा कि शायद अभी तक उपमुख्यमंत्री ने अध्यादेश पढ़ा ही नहीं है, क्योंकि जिस एमएसपी कि वह बात कर रहे हैं कृषि कानून में ऐसा कुछ है ही नहीं।

उन्होंने कहा अभी तक जो बातें केवल मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर किया करते थे। अब वैसे ही भाषा का प्रयोग उप मुख्यमंत्री द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने दोनों को खुली चुनौती देते हुए कहा कि दोनों एक साथ मिलकर भी तीनों कानून में एमएसपी शब्द ढूंढ कर तो दिखाए।

कृषि कानून में एमएसपी शब्द ढूंढने के लिए दीपेंद्र हुड्डा ने दी दुष्यन्त को खुली चुनौती

हुड्डा ने आगे किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन इतना तूल पकड़ा चुका है कि वहां किसान अपनी जान तक गंवा रहे हैं। जिनमें एक सोनीपत के युवा किसान भी शामिल थे। इतना सब कुछ देखने के बावजूद भी सरकार अपना रवैया बदलने को कतई तैयार नहीं है।

उन्होंने कहा कि ठंड लगातार बढ़ती जा रही है और आने वाले दिनों में बारिश होने की संभावना भी जताई जा रही है। वहीं जो आंदोलनरत किसानों और उनके परिवारों के लिए और अधिक कष्टप्रद साबित हो जाएगी। इसलिए सरकार मानवीय और संवेदनशील रवैया अपनाए और किसानों की मांगें मान ले।