कोरोना महामारी के दौरान अपनी जान को जोखिम में रखते हुए सहायता करने वाले डॉक्टर्स का हमे तहे दिल से सम्मान करना चाहिए ।इसी के साथ नर्सेस और वार्ड बॉय भी इस समान के अधिकारी है ,लेकिन कोरोना काल के दौरान चिकित्सकीय सेवा वर्ग के प्रति हम आज दंडवत मुद्रा में खड़े हैं। उनके सम्मान और उत्साहवर्धन के लिए उपकृत भाव से कभी करोड़ों लोग दीपक जलाते हैं, कभी ताली-थाली-घंटी बजाते हैं तो कभी सेना के विमानों के जरिये पुष्पवर्षा करवाते हैं।
इन अद्भुद दृश्यों के बीच कुछ सवाल नीतिगत विमर्श के केंद्र से गायब हैं, मसलन नर्सिग सेक्टर की विसंगतियां। जिस स्वास्थ्य सुविधाओं के बल पर दुनिया आज कोरोना से मुकाबला कर रही है, उसका मेरुदंड यदि नर्सो को कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड संकट के दौर में व्यापक संख्या में मरीज केवल नर्सो के सेवाभाव व समर्पण से ही स्वस्थ्य हुए हैं। कोरोना के मरीज़ दवाइयों से कम बल्कि सेवाभाव की निष्ठा से ठीक हो रहे है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड संकट के दौर में व्यापक संख्या में मरीज केवल नर्सो के सेवाभाव व समर्पण से ही स्वस्थ्य हुए हैं। एक तरफ सरकार महिलाओं के सशक्तीकरण की बात कहती है, लेकिन नर्सिग सेक्टर की करीब कई महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण की तरफ कोई ध्यान नहीं है। कोविड संकट के बाद दुनिया का स्वास्थ्य क्षेत्र पूरी तरह बदलने वाला है, इसलिए भारत इस अवसर का लाभ भी उठा सकता है। इसके लिए हमें बुनियादी रूप से नर्सिग सेक्टर को एकीकृत रूप से पुन: खड़ा करना होगा।
राष्ट्रीय नर्सिग सेवा शर्ते निर्धारित करने के साथ ही नर्सिग स्कूल्स की संख्या को भी बढ़ाना होगा। अब जनता ज़्यादा होगी तो बीमारियां भी अधिक होंगी ऐसे में नर्सों का अधिक संख्या में होना अनिवार्य है ।
यदि बात करी जाए तो इस समय फरीदाबाद में कोरोना संक्रमितों के अधिक इलाज बीके हॉस्पिटल और इएसआईसी मेडिकल कॉलेज में हो रहा है । कुछ दिनों पहले नर्सों को सम्मानित भी किया गया था ।
लॉक डाउन के दौरान हम घर में रह कर ज़्यादा कुछ तो नहीं लेकिन आज International Nurse Day के अवसर पर इन नार्सो का धन्यवाद अवश्य कर सकते है। जो दिन रात अपनी जान की परवाह किए बिना अपना चिकित्सिक धर्म निभाती है ।
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