लॉकडाउन में दिन रात एक कर महिलाओं ने बनाए मास्क, मजदूरी देने पर विभाग ने पहना झूठ का मुखौटा

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लॉकडाउन के कारण जहां गरीब तबके के पास कमाई का कोई जरिया नहीं था, तो ऐसे में सरकार उनके लिए एक वरदान के रूप में योजना लेकर आई। जिसे आजीविका मिशन योजना के रूप में शुरू किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीब वर्ग के लोगों की आर्थिक तंगी दूर करना था।

ऐसे में जब गरीबों की मजदूरी देने का समय आया तो विभाग उनकी मजदूरी पर कुंडली जमाए बैठा हुआ है। ऐसे में अपने लिए न्याय की गुहार लगाते हुए आजीविका मिशन से जुड़ी हुई कुछ महिलाएं अधिकारियों के द्वार तक पहुंच गई और उनसे उनकी मेहनताना दिलवाने की अपील करने लगी।

लॉकडाउन में दिन रात एक कर महिलाओं ने बनाए मास्क, मजदूरी देने पर विभाग ने पहना झूठ का मुखौटा

दरअसल, यह वाक्य उस समय का है जब संक्रमण के दौरान महिलाओं के समूह द्वारा फेस मास्क बनवाए गए थे। लगभग 8 महीने बीत जाने के बाद भी जब उन्हें उनका मेहनताना नहीं मिला तो वह वह थक हार कर अधिकारियों के पास पहुंच गई।

वहीं महिलाओं द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक मास्क बनाने में लगे मेटिरियल का पैसे की भी अदायगी नहीं की गई है। इन महिलाओं की मानें तो वे कई बार मिशन से जुड़े अधिकारियों से बार-बार उनका पैसा दिए जाने की गुहार लगा चुकी हैं, मगर उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।

लॉकडाउन में दिन रात एक कर महिलाओं ने बनाए मास्क, मजदूरी देने पर विभाग ने पहना झूठ का मुखौटा

उपायुक्त से मिलने आई गांव बनमंदौरी की महिलाओं ने बताया कि जब संक्रमण तेजी से पैर पसार रहा था तब लोग घरों में छिपे हुए थे। ऐसे में उन महिलाओं द्वारा अपने हाथों से फेस मास्क बनाकर तैयार किए गए थे। अब जब उनके वेतन का समय आया तो विभाग ने हाथ खड़े कर दिए।

महिलाओं ने बताया कि जहां फेस मास्क तैयार करने में दिन-रात मेहनत की गई तो मटेरियल का पैसा भी उन्हें अपनी जेब से देना पड़ा। अब जब भी पैसे देने की बारी आती है तो विभाग उनकी बात टाल देते हैं।

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आजीविका मिशन ग्रुप से जुड़ी महिलाओं ने अपनी मांगों के संबंध में एक ज्ञापन अतिरिक्त उपायुक्त को सौंपा। वहीं शहर के जाने माने आरटीआई एक्टिविस्ट एवं एडवोकेट सुशील बिश्नोई ने इस मसले पर बोलते हुए कहा कि वह इस मामले को पहले भी उठा चुके हैं और इसे एक घोटाला बताया है।