दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं। जिनके पास एक समय पर रहने के लिए जगह और पेट भर खाना भी नसीब नहीं हुआ करता था। और आज वो जानेमाने बिजनेस मैन बन गए है। आज ऐसे ही एक बिजनेस मैन की कहानी पेश करते हैं। गुजरात (कच्छ) में रहने वाले वीरल पटेल की साल 1982 में वीरल मुंबई पहुंचे थे। तब उनकी उम्र 14 साल थी।
वीरल बताते है कि जब वह कच्छ से मुंबई आए थे। तब उनके पास सौ रुपए थे वह मुंबई ट्रेन से आए थे जिसमे उनके 65 रुपए ट्रेन के किराये में लग गए। इसके बाद उनके पास 35 रुपए बचे थे। बता दे जिस रिश्तेदार के कहने पर मुंबई आए थे, उन्हीं के घर रहने लगे। पास में ही एक स्टेशनरी शॉप थी, उसमें वीरल को काम मिल गया।
स्टेशनरी शॉप के मालिक ने कहा कि मैं पगार नहीं दे सकता लेकिन तुम्हें यहां दोनों वक्त खाना मिलेगा और ठहरने का इंतजाम भी हो जाएगा।’ वीरल ने उनकी बात मान ली, क्योंकी उस समय उनके पास कोई काम नहीं था और उन्हें काम की आवश्कता थी। वीरल ने वहां मेहज छह महीने तक बिना पैसे लिए काम किया। वीरल बताते है कि उन्होंने पूरी शॉप संभाल ली थी।
जिससे देखकर शॉप के मालिक काफ़ी खुश थे और तब उन्होंने वीरल को पगार देना शुरू कर दिया। पहली पगार 250 रुपए थी। हालांकि उस समय 250 रुपए की वैल्यू बहुत ज्यादा हुआ करती थी। वीरल के मुताबिक, उन्होंने शॉप का पूरा काम संभाल लिया था इसलिए सेठ ने अपने दस साल पुराने कर्मचारी को भी हटा दिया। उसकी पगार 400 रुपए महीना थी।
बता दे वीरल यह सोच कर मुंबई आए थे कि कुछ पैसे जोड़ लूं। फिर ट्रैक्टर खरीदकर गांव में खेती करेंगे, लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। स्टेशनरी शॉप में काम करते हुए वीरल को बिजनेस कैसे किया जाता है इस बात का आइडिया मिल गया। फिर एक रिश्तेदार ने उन्हें ठाणे में अपनी स्टेशनरी शॉप में साथ में काम करने के लिए कहां।
वीरल बताते हैं। कि उनके साथ में पार्टनरशिप तौर पर जुड़ा था। उन्हें काम की पूरी समझ थीं वीरल को पता था कि ग्राहकों कैसे जोड़ते हैं। वीरल ने वहां ढाई साल साथ में काम किया और साथ ही पैसे जोड़ते रहे। वीरल ने साल 1991 में सवा पांच लाख रुपए में ठाणे में खुद की दुकान खरीद ली। पहले ही साल में दुकान से सवा पांच लाख रुपए की कमाई हुई थी। इस तरह जितने पैसे उन्होंने दुकान खरीदने में लगाए थे। वह पूरा पैसा वापस आ गया था।
अपनी दुकान में सामान लाने के लिए वीरल लोकल से बड़े मार्केट जाया करते थे। उन्होंने अपनी दुकान को बढ़ाने के लिए काफ़ी मेहनत की थी। जब वीरल को साल 1996 में बसंत विहार में एक बड़ी दुकान मिली तो उन्होंने पुरानी दुकान बेचकर उसे खरीद लिया। दुकान के सामने ही स्कूल था जिससे उनकी आमदनी भी काफ़ी अच्छी हो गई थीं।उसके बाद साल 2005 में वीरल के दोस्त ने उन्हें स्वीट्स और स्नैक्स के बिजनेस को करने की सलाह दी। उनके दोस्त ने कहा कि इस बिजनेस में प्रॉफिट ज्यदा हैं। वीरल को भी अपने दोस्त की ये सलाह पसंद आयी।
दोस्त की सलाह मान कर वीरल ने अपनी दुकान से ही समोसे-कचौड़ी जैसे आइटम के साथ मिठाइयां बेचना शुरू कीं। इस बिजनेस के वीरल को काफ़ी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। तब उन्होंने चार महीने बाद ‘गौरव स्वीट्स एंड नमकीन’ के नाम से खुद का एक अलग वेंचर शुरू किया। कुछ समय बाद ही वीरल ने फैक्ट्री शुरू कर ली। बता दे आज वीरल की 12 ब्रांच हैं। इनमें से पांच तो उन्होंने लॉकडाउन के दौरान ही खोली हैं।
बता दे महामारी से पहले उनके बिजनेस का टर्नओवर 17 करोड़ रुपए था। अब वह फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम कर रहे हैं। और वह चाहते है कि उनका बिजनेस साल में सौ करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच जाए। वीरल बताते है कि वह फ्रेंचाइजी मॉडल से सौ ब्रांच खोलने की योजना है। और इसके साथ ही वह पीछले चार साल से गांव में ऑर्गेनिक खेती भी करवा रहे हैं।
Written By :- Radhika Chaudhary
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