दिन प्रतिदिन कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की लगातार बढ़ती कतार देशभर में ना सिर्फ लोगों के लिए भय की स्थिति को मजबूत कर रही है, वहीं दूसरी तरफ यह सरकार की उन नाकामियों का जीता जाता नमूना पेश कर रही है जिसका भुगतान आमजन भुगत रही है।
13 मार्च से स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी बन्द करने का आदेश, 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगा कर तालियां और थालियां भी खूब पिटवाली। फिर एक सप्ताह का लोक डाउन कर जनता को घर में कैद किया। इस पर भी कुछ नहीं हुआ तो 21 दिन के लिए घर को ही जेल बना दिया।
अगर जनता के लिए इतनी फिक्रमंद थी सरकार तो समय रहते क्यों ठोस कदम नहीं उठाए गए। हवाई विमान के दौरान आंनद लेने वाले विदेशियों को क्यों भारत का विनाश करने के लिए खुला छोड़ दिया गया।
अगर समय रहते प्रत्येक व्यक्ति की ट्रैवल हिस्ट्री की गहनता से जांच की जाती। तो आज पूरा देश विश्व महामारी द्वारा वातारण में विलुप्त जहरीली आवाहवा में सांस नहीं ले रहा होता।
अगर इस महामारी का श्राप सरकार ने पहले ही भाप लिया तो अभी तक इससे निपटने के लिए क्यों कमर नहीं कसी। अचानक हुए सरकार के फैसलों ने सैकड़ों के सर से छत तक छीन ली। इतना ही नहीं बल्कि कुदरत की खूबसूरत देन जानवरों को भी इस कोरोना की भेंट चढ़ा दिया गया।
देशभर में लोक डाउन को 8 दिन बीत चुके है। लेकिन अभी भी दिहाड़ी और जरूरतमंद लोगों के डेरे के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए। भले ही पीएम मोदी के पीएम केयर फंड में करोड़ों का निवेश हो चुका हो, लेकिन अभी भी सैकड़ों लोग पेट की भूख शांत करने के लिए दर दर भटक रहें हैं।
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