भारत में अनेकों मान्यताएं अनेकों संस्कार हर वर्ग में बटे हुए हैं। हमारे देश में योगी से लेकर साधु इनकी बहुत इज़्ज़त की जाती है। इनकी कड़ी तपस्या सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। एकांत और दर्द के बीच 40 दिन की कठोर साधना से गुजरने के बाद नाथ संप्रदाय में साधक योगी बनते हैं। इस आध्यात्मिक संप्रदाय में पहले औघड़ फिर योगी बनाने की परंपरा है।
जितना आसान जीवन इन योगियों का लगता है, उस से कठिन तो इनका तप होता है। ऐसा तप जो सोचा भी नहीं जा सकता। हरियाणा में बाबा मस्तनाथ अस्थल बोहर मठ नाथ संप्रदाय का जाग्रत शक्तिपीठ है। इस बार यहां वार्षिक मेले के दो दिन बाद से होली तक कान चीरा संस्कार करके योगी बनाने का विधान पूरा किया जा रहा है।
यह परंपरा सदियों से चलती आ रही है। इनकी कड़ी तपस्या की धुन सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शुक्रवार सुबह 10 बजे अस्थल बोहर मठ में दो औघड़ जन को कान चीरा संस्कार देकर योगी की साधना के लिए एकांतवास में भेेजेंगे। नाथ सिद्धों की दी हुई व्यवस्था पर पहले औघड़ जन को वार्षिक मेले के तीसरे दिन नवमी को गद्दी में विराजमान महंत योगी से दीक्षा की अनुमति लेनी होती है।
यह दीक्षा ऐसे ही नहीं दी जाती है। इसके लिए सबकुछ त्याग करना पड़ता है। जिसमें सबकुछ त्यागने की शक्ति होती है उसी को दीक्षा दी जाती है। इसकी अनुमति के बाद कान चीरा संस्कार कर कान में कुंडल डाल दिया जाता है। कान चीरा संस्कार बिल्कुल गुप्त प्रक्रिया है। इस दौरान साधक व गुरु के अलावा और किसी को भी उस एकांत वास में जाने की अनुमति नहीं होती है। यह साधना 40 दिन तक चलती है।
इस साधना तक पहुंचने के लिए बहुत कुछ करना होता है। कोई भी ऐसे ही इस साधना का हिस्सा नहीं बन सकता है। इस दौरान साधक को बाबा मस्तनाथ व गुरु गोरखनाथ महाराज के नाम-मंत्र का निरंतर जप करना होता है।
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