देश में हर दिन कुकर्म और दुष्कर्म के मामलों में इज़ाफ़ा होता जा रहा है। हर दिन सैकड़ों खबरें इस संबंध में अखबारों में छपती है। इतना ही नहीं बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों की घटनाएं भी लगातार बढ़ती जा रही है जो समाज को शर्मसार करती हैं। इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या देखकर सरकार ने वर्ष 2012 में एक विशेष कानून बनाया था।
यह एक्ट बच्चों के हित और सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है और यह भी ध्यान दिया जाता है कि इसका पालन कड़ाई से किया जा रहा है या नहीं।
हमारे देश को युवाओं का देश कहा जाता है। भारत के कुल जनसंख्या का 37% हिस्सा बच्चों का है। इस कानून की धारा चारा में वो मामले आते हैं जिसमें बच्चे के साथ कुकर्म या फिर दुष्कर्म किया गया हो। इस अधिनियम में सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
बाल यौन शोषण पर ध्यान आकर्षित करने और इसके आसपास की चुप्पी की साजिश को तोड़ने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। इस अधिनियम की धारा छह के अंतर्गत वो मामले आते हैं जिनमें बच्चों के साथ कुकर्म, दुष्कर्म के बाद उनको चोट पहुंचाई गई हो। इस धारा के तहत 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
बच्चों को अपने ऊपर हुए जुल्मो का खुलासा करना अधिक कठिन लगता है। अगर धारा सात और आठ की बात की जाए तो उसमें ऐसे मामले आते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग में चोट पहुंचाई जाती है। इसमें दोषियों को पांच से सात साल की सजा के साथ जुर्माना का भी प्रावधान है।
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